Book Title: Preksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 7
________________ प्राक्कथन भारतीय शिक्षा पद्धति में सुधार की चर्चा बहुत समय से चल रही है। श्री प्रकाश आयोग से श्री कोठारी आयोग तक अनेक आयोगों की अनुशंसा और स्थापनाएं इस तथ्य की साक्षी है कि शिक्षा में परिवर्तन अभिलषणीय है । शिक्षा पद्धति को बदलने के अनेक प्रयास किए गए। मूल्यपरक शिक्षा इसी चिन्तन से बढ़ा एक चरण है। वर्तमान शिक्षा विद्यार्थी को अपने विषय में निपुणता हासिल अवश्य करवाती है। उसका ही परिणाम है कि आज एक से एक अच्छे डॉक्टर, इंजीनियर, तकनिसीयन, कलाविद प्रादुर्भूत हो रहे हैं, किंतु साथ ही उनमें दायित्व बोध, आविष्कार वृत्ति, दूसरों के प्रति करुणा, सहिष्णुता, अनुशासन आदि मूल्यों का विकास प्रश्नचिन्ह बना हुआ है। मूल्यपरक शिक्षा पर चिन्तन बहुत हुआ । इसे पाठ्यक्रम में किस तरह लागू किया जाए यह अहं सवाल था । अजमेर 1 विश्वविद्यालय ने अध्यात्म विद्या के विकास का सार्थक प्रयास किया है। धर्म निरपेक्षिता के नाम पर पुरानी विचारधाराएं हैं- चाहे वे वैदिक हों, जैन हों, बौद्ध हों या अन्य कोई भी हों उनका भारतीय शिक्षा जगत् में पठन-पाठन का रास्ता खोलकर स्तुत्य कार्य किया है। किसी विचारधारा को जानना और उसके संबंध में प्रयोग करना महत्वपूर्ण कार्य है । विज्ञान के प्रयोग में सत्य को जनता के सामने प्रस्तुत किया। प्राचीन युग में ऋषियों ने भी अध्यात्म विद्या का विकास किया था जिससे आंतरिक चेतना को अनावृत्त और प्रगट होने का अवसर उपलब्ध हुआ । भौतिक विज्ञान और अध्यात्म विज्ञान दो अलग-अलग विज्ञान नहीं हैं । सत्य को जानने के प्रयोग को विज्ञान कहा गया है। वह विज्ञान भौतिक सामग्री से प्रगट होता है। अतः उसे भौतिक विज्ञान कहा गया । अतीन्द्रिय चेतना से सत्य को जानने की प्रक्रिया को अध्यात्म विज्ञान अथवा चेतना का विज्ञान कहा गया है। दोनों प्रक्रियाएं सत्य को जानने की हैं, उनके परिणाम भी एक ही उपलब्ध होते हैं। हां यह सत्य है कि भौतिक विज्ञान का इतिहास मात्र ८०० वर्ष पुराना है जबकि अध्यात्म का यह विज्ञान हजारों वर्ष पुराना है। दोनों का अध्ययन और अध्यापन आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय से ही एक अभिनव संस्कृति का अभ्युदय हो सकेगा । Scanned by CamScanner

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