Book Title: Prayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 9
________________ - सज्जन मनस् स्फुरणा मनोगत पापों का, देहकृत दोषों का, आत्मकृत दुष्कार्यों का, यावकृत दुर्विचारों का, __ बोध हो.... थवोधव की कर्म परम्परा का, अपराधों की अटूट श्रृंखला का, जन्म मरण की दुखद यात्रा का, वैधाविक अनादि अवस्था का, विच्छेद हो... पश्चात्ताप की अश्रुधारा से तप की विशोधि ज्वाला से प्रभु वीर की आगम शाला से गुरुजनों की अनुधव माला से आत्म निर्मलीकरण का अमूल्य अवसर सधी को आत्मसात हो। इसी आत्मनाद के साथ.... -

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