Book Title: Pravrajya Yog Vidhi Author(s): Maniprabhsagar Publisher: Ratanmala PrakashanPage 12
________________ प्रवेश करना चाहिये। मांडलिक योगों के बीच में तीन आचाम्ल के द्वारा तीन अध्ययन का योग होने के बाद बड़ी दीक्षा की नंदी करके उत्थापना करना चाहिये। विधि मार्गप्रपा में आचार्य जिनप्रभसूरि सर्वप्रथम आवश्यक योग करने का विधान बताते हैं। उसके बाद मांडलिक योग करने चाहिये और तत्पश्चात् दशवैकालिक योग करने के बाद बड़ी दीक्षा देनी चाहिये तत्तो य आवस्सगतवं कारिज्जइ। मंडलिसत्तगायंबिलाणि य। मंडलिसत्तगं च इम...... तओ दसवेयालियतवं कारित्ता उट्ठावणा कीरइ। .... धम्मोमंगलाइ-छज्जीवणियासुत्तं पाढित्ता, तस्सेव अत्थं कहित्ता, पुढविकायाइजीवरक्खणविहिं जाणावित्ता, पाणाइवाय विरमणाईणि वयाणि सभावणाइं साइयाराणि कहिय......। ___- तब आवश्यक योग का तप करे। फिर मांडलिक योग के सात आयंबिल करें। तत्पश्चात् दशवैकालिक योग का तप करके उपस्थापना अर्थात् बड़ी दीक्षा करें। धम्मो मंगल के प्रथम अध्ययन से लेकर छज्जीवणिया चतुर्थ अध्ययन पर्यन्त पढाकर, उसका अर्थ बतलाकर, पृथ्वीकायादि जीव रक्षण विधि समझा कर, प्राणातिपात विरमण आदि व्रत भावना व अतिचार सहित बताकर.. फिर बड़ी दीक्षा प्रदान करें, जिसकी विधि इस प्रकार है....। ___ इस संबंध में तपागच्छ की परम्परा कुछ भिन्न जान पड़ती है। सेन प्रश्न के 470 वें प्रश्नोत्तर में बड़ी दीक्षा होने के बाद मांडलिक योग कराये जाने का उल्लेख है। उन्होंने जोर देकर लिखा है कि दशवैकालिक योग हो जाने पर भी बड़ी दीक्षा हुए बिना मांडलिक योग के सात आयंबिल नहीं कराये जा सकते। उन्होंने इस हेतु योगविधि के प्रमाण का उल्लेख किया है। आचार दिनकर में दशवकालिक के अध्ययन के प्रति बहुत ही अधिक जोर दिया है प्रज्ञाहीनस्यापि दशवैकालिकाध्ययनचतुष्क-पाठमन्तरेण नोत्थापना। __. अर्थात् अल्पबुद्धि वाले को भी दशवैकालिक सूत्र के चार अध्ययन पढ़े बिना उत्थापना अर्थात् बड़ी दीक्षा नहीं दी जा सकती है। पूर्व में आचारांग का अध्ययन करके ही बड़ी दीक्षा दी जाती थी। दशवैकालिक सूत्र की रचना के बाद आचारांग की अपेक्षा सरल, सुबोध संकलन होने से दशवैकालिक सूत्र को महत्व मिला और उपस्थापना के लिये आचारांग के स्थान पर इसका अध्ययन अनिवार्य कर दिया गया। योग विधि / 5Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 248