Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Ajitshekharsuri
Publisher: Arham Aradhak Trust

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Page 536
________________ 504 परिशिष्ट - ३साक्षिपाठानामकारादिक्रमः ३९६ ३९७ १८५ गुणठाणठाण॰ [सम्बोधप्रक० २०६] गुरुकारियाई [दर्शनशुद्धिप्रक० २५] गुरुपारतंत नाणं [पञ्चाशक ११/७ पा.१] गृहिणोऽपि प्रकृत्या [अष्टक २/५ टी.] गंठिगसत्तापुण• [उपदेशपद २५३] १०८ २७३ १०९ चउवीसत्थएणं [उत्तरा० २९/११] चमरस्स णं भंते ! [भगवती १०/५/४०५-४०६] ६८ चरणकरणप्पहाणा [सम्मति० ३/६७] १०८ चरिमसरीरो साहू [उत्तरा निर्यु० २९०] ५० चिइवंदणसज्झाय [महानिशीथ अ० ३, सू० २६/११] २१२ चित्तमेव हि संसारो [शास्त्रवार्तासमु. ५/३०] १८८ चिन्तामणिः परोऽसौ [षोडशक २/१५] चेइयकुलगणसंघे अन्नं [आव. नि. ११७५] २४९ चेइयकुलगणसंघे आय. [आव. नि० ११०१] २५४ चैत्यायतनप्रस्थापनानि [प्रशमरति ३०५] २८७ चोएइ चेइयाणं [बृहत्कल्पभाष्य चोयइ से परिवारं व्यव० सू० १/९६०] ३१८ जहा एसा अरिहंतपडिम ४७ जाणं काएण. [सूत्रकृताङ्ग १/१/२/२५] जावंति चेइयाइं [श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र गा० ४४] ३३७ जावं च णं एस २७५, ४१८ जा जयमाणस्स [ओघनियुक्ति ७५९] १६७ जा सम्मभावियाओ [बृहत्कल्पभा० १/१११६] ३३६ जिनभवनं जिनबिम्बं ४६६ जीवकिरिया दुविहा स्थानाङ्ग २/१/६०] १८५ जीवा णं भंते ! [भगवती १/१/१६] १६६ जीवेणं भंते ! नाणा० [प्रज्ञापना २२/२८२] १८२ जीवो गुणपडिवन्नो [आव० नि० ७९२] ४७५ जे अदाणं [सूत्रकृताङ्ग १/११/२०] १३० जोगे जोगे [ओघनियुक्ति २७८] २८२ जो उत्तमेहिं मग्गो [बृहत्कल्पभा० पीठिका २४९] ४१२ जो जहवायं [उपदेशमाला ५०४ पू.] जो जाणदि अरहते [प्रवचनसार १/८०] ४८५ जो जिणदिढे [उत्तरा. २८/१८] १६ जो जीवे वि वियाणइ [दशवै० ४/१३] जो पुण णिरचणो [उपदेशमाला ४९३] २७३ जो वि दुवत्थ० [बृहत्कल्पभा० ३९८४] १५५ जंजह सुत्ते [बृहत्कल्पभा० ३३१५] जंणं समणो वा [अनुयोगद्वार २८] जं पुण एयवियुत्तं [पञ्चाशक ६/९] २२८ जं मोणं तं सम्मं [श्रावकप्रज्ञप्ति ६१] ११३ जं सक्कइ तं कीरइ [सम्बोधप्रक० ८९४ पा० १] १४८ जं सम्मति पासहा [आचाराङ्ग १/५/३/१५५] १४ १३ २७१ ४४७ १०६ छज्जीवकायसंजमु [आव. भा. १९३] छप्पिहजीवनिकाए [सम्मति० ३/२८] छविहे कप्पट्टिई [बृहत्कल्पभा० ६/२०] छस्सहस्सा [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ५/११८] २८० १०७, ४५२ ९५ १०५ ज्ञापकं चात्र [अष्टक २७/५] १३६ ४३१ जइवि अपडिमाओ [आव. नि. ११३५] ४०३ जइ वि य णिगिणे [सूत्रकृताङ्ग १/२/१/९ पा० १] २६२ जइ हीणं दव्वथयं [उपदेशरहस्य ३७] ३६९ जइ तत्तो [विंशि० प्रक० २०/१५] ४९० जक्खा हु वेयावडियं [उत्तरा० १२/३२ उत्त०] २५२ जनोऽयमन्यस्य [सिद्ध, द्वात्रिं. ६/५] २९१ जम्माभिसेग० [आचा० निर्यु. ३३१] ३३४ जस्स णत्थि पुरा [आचाराङ्ग १/४/४/१३९] जह गोयमाइयाणं [गुरुतत्त्वविनिश्चय १५] जह वेलंबगलिंगं [आव. नि. ११३७] ४०४ जह वेगसरीरंमिवि [विशेषाव. १९४५] ४३४ जह सावजा किरिया [आव० नि० ११३३] ४०२ झाणं सुभमसुभं [विशेषाव. १९३७] ण णमो बंभीए [भगवती श० १, सू० २] णमो सुअस्स [भगवती श० १, सू० ३] णवि ते पारिवजं [आव० नि० ४२८] ण इमं सक्क० [आचाराङ्ग १/५/३/१५५] ण उ तह भिन्नाणं [विंशि० प्रक० २०/९] ४५२ ४८९

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