Book Title: Prashnottar Shatam
Author(s): Ratnakirtivijay, Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 47
________________ फेब्रुआरी - 2012 79 यत्र सरसि तत्तथा / तथा [जिनवद्-] जिनो विद्यते यत्राऽर्हत्सदने तत्तथा / 3. लभे- प्राप्नोमि न- नैव / 4. जिनवल्लभेन // 157|| किमपि यदिहाऽश्लिष्टं क्लिष्टं तथा चिरसत्कविप्रकटितपथाऽनिष्टं शिष्टं मया मतिदोषतः / तदमलधिया बोध्यं शोध्यं सुबुद्धिधनैर्मनः, प्रणयविशदं कृत्वा धृत्वा प्रसादलवं मयि // 158 / / इति खरतर-श्रीजिनवल्लभसूरिकृतं प्रश्नशतं तट्टीका च सम्पूर्णमिति भद्रम् / श्रीरस्तु / संवत् 16 आषाढादि 18 वर्षे श्रावणसुदि 9 रवौ लिखितमिदं पुस्तकम् / लेखक-पाठकयोः कल्याणं भूयास्ताम् // अनुसन्धान-५७, ट्रंक नोंध- 2 नी पूर्ति अनुसन्धान-५७मां अकटूंकनोंधमां, अत्यारे गणावाता 34 अतिशयोमांथी समवसरण, सुवर्णकमल जेवा घणा अतिशयो, समवायाङ्गजीमां नथी जणावाया ते विशे चर्चा थई हती. आ सम्बन्धे अेक महत्त्वपूर्ण उल्लेख श्रीजिनभद्रगणि-विरचित विशेष-णवतिमा छ : "होऊणं व देवकया चउतीसाइसयबाहिरा कीस।। पागारंबुरुहाइ अणण्णसरिसा वि लोगम्मि? // 109 // (प्रश्न : देवो द्वारा रचायेला समवसरण, कमल व. विश्वमा अनन्य होवा छतां पण 34 अतिशयोमां केम तेमनी गणतरी नथी ?) "चोतीसं किर णियया ते गहिआ सेसया अणियय त्ति / सुत्तम्मि न संगहिआ जह लद्धीओऽवसेसाओ // 110 / / __(उत्तर : जेम लब्धिओ अनन्त होवा छतां सूत्रमा तो 28 ज गणाववामां आवी छे; तेम जे अतिशयो नियत- अवश्यम्भावी हता, तेमनी ज गणना सूत्रमा करवामां आवी छे. बाकीना अनियत- कादाचित्क अतिशयोनुं ग्रहण सूत्रमा नथी कर्यु.)" जिनेश्वर समवसरणमां ज देशना आपे के प्रभु सुवर्णकमल पर ज चाले ओवी प्ररूपणाओना सन्दर्भे आ उल्लेख ध्यानपात्र छे अने खुलासारूप छे.

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