Book Title: Prashna Vyakaran Sutram Part 2
Author(s): Gyanvimalsuri, Mafatlal Zaverchand Pt
Publisher: Muktivimal Jain Granthmala
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प्रश्न
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अपरिग्रह ए पांच संवर मळी कुल दस विषयोने दस अध्ययनोमा खुब विस्तृत रौते प्रतिपादन कया छे. तो पण आ ग्रन्थमा 'प्रथम विधाओर्नु व्याक० प्रतिपादन हुतुं ते वातनो स्वीकार वृत्तिकार सूरिपुरंदर श्रीमद् अभयदेवसूरि महाराज करी हाल पांच आश्रव अमे पांच संवरना प्रतिपादननो कइ रीते संबंध छे ते जोडतां कहे छे के “ विद्याओना प्रतिपादनरुप प्रश्नव्याकरणनो व्युत्पत्ति अर्थ पहेला हतो पण हाल तो पांच आश्रव अने पांच संवरनु प्रतिपादन मळे छे, अथवा तो महाज्ञानी पूर्वाचार्योए आ युगना नजीवा कारणे विद्याओनो उपयोग करनार पुरुषोना स्वभावने जाणी ते विद्याने बदले पंचाश्रव अने पांच संवरनु वर्णन कयु लागे छे."
आ बाबतमा सूरिपुंगव श्रीमद् पू. ज्ञानविमलसूरि महाराज पू. अभयदेवसूरि महाराजे जणावेल प्रश्नव्याकरण प्रश्नव्याकरण दशा अने तेना अर्थने पूर्ण रीते स्वीकार कर्या उपरांत जणावे छे के___आ प्रश्नादि विषाओ पांच आश्रवनो त्याग करी पांच संकर रूप संवममा जीवता महापुरुषोने ज उत्पन्न थइ शके. माटे संयमवाळो ज विद्यावाळो थह शके तेथी संयमना स्वरूप प्रतिपादन ते परिणामे विधाना प्रतिपादनरूप छे.
१. प्रमाः-अंगुष्ठादिप्रभाविद्यास्ता ब्याक्रियन्ते-अमिधीयन्तेऽस्मिचिति प्रमव्याकरणम् क्वचित् 'प्रश्नव्याकरणदशा' इति रक्ष्यते, तत्र प्रश्नानां विद्याविशेषाणां यानि व्याकरणानि तेषां प्रतिपादनपरा दशा-वशाध्ययमप्रतिबद्धाः ग्रंथपद्धतयः इति प्रश्नव्याकरणवशाः [प्रमव्याकरण पृ.१.] अर्थ व्युत्पत्त्यर्थोऽस्य पूर्वकालेऽभूत् इदानीं त्वाश्रवपशकसंवरपशकण्याकतिरेवोपलभ्यते
। २. विशिएसयमवतां क्षयोपशमवशात् प्रमादिविद्यालमवात् ततः संयमवानेव तवान् मतस्तत्स्वरूपमयतारितवान्
शाम वि० पृष्ठ ६.

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