Book Title: Prashna Vyakaran Sutram Part 2
Author(s): Gyanvimalsuri, Mafatlal Zaverchand Pt
Publisher: Muktivimal Jain Granthmala

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Page 13
________________ प्रश्नव्याकरणसूत्र मूहकार तथा वृत्तिकारनो ढंक परिचय आ सूचना राचयिता सकल जैन श्रमणसंघना आद्य माधारभूत पूज्य प्रवर गणघर भगवान सुधर्मास्थामीजी के. भगवान महावीर परमात्माए कैवल्यवान पाम्या पछी साधु साध्वी श्रावक भाविकारुप चतुर्विध संघनी स्थापनारुप तीर्थ स्थाप्यु. चतुर्विधसंघर्नु मूख्य अप्रगण्य अंग श्रमणसंघना आद्य महापुरुषोते अगिभार गणधर भगवंतो छ, जे महापुरुषोए भगवान महावीर पासेथी “ उप्पन्ने हवा विगमे हवा धुवे हवा "रूप त्रिपदी पामी पोतपोताना तीक्ष्ण क्षयोपशमद्वारा मिन्नभिन्न द्वादशांगी-जिनवाणीनी रचना करी भगतमा रहेल तमाम पदार्थो भने तेमा थनारा प्रत्येक रूपान्तरो के जे भाषार्मा उतरवाने शक्य होय ते सर्वना अनंतमा भागने तेमणे पोतानी द्वादशांगीमां उताया. ते द्वादशांगीनो साता जिनसदृश थाय तेषी महोर छाप पण केवलीभगवंत महावीरद्वारा सिद्ध करी. आ अगिार गणधर भगवंतो परस्पर शब्दाने सरखा होवा छतां दीर्घायुषी पांचमा गणधर सुधर्मास्वामीनी द्वादशांगीज परंपराए जैनशासनमां प्रचार पामी. कारणके सुधर्मास्यामि भगवंत सिवायना इसे गणधर भगवंतो थोडा काळमां निर्वाण पाम्या, अने तेमनी प्ररुपित द्वादशांगी पण तेमनी साथे लुप्त थई गह. आजे जे जिनागम मूळ स्वरूपे अर्थरुपे भावरुपे के अन्यरुपान्तरे विद्यमान ते सर्वनुं मूळस्थान सुधर्मास्वामी भगवंतनी द्वादशांगी है. जे विद्यमान जे आगमग्रंथो छे ते सर्व पूज्यप्रवर सुधर्मास्वामी रचित के. मा प्रश्नव्याकरणसूत्र अगिभार अंग पैकीनुं दशमु अंग छे. ते पण सुधर्मास्वामी भगवते रचेलुं छे, जे पू. अभयदेवरि महाराजनी वृत्तिनी प्रस्तावनाथी सहेजे जणाय के.

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