Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye Author(s): Jyoti Prasad Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 9
________________ को कार्यान्वित करने का प्रयास करते हार ही फलती-फूलती है और प्रगतिपय पर उत्तरोत्तर अग्रसर होती जाती है। अतीत में सर्वधा कटकर वर्तमान का मूल्य नगण्य रह जाता है। भाबी के बीज भो तो वर्तमान में ही रोपे जाते हैं। महाकवि 'दिनकर' के शब्दों में इतिहासकार का यही उद्देश्य होता है कि... प्रियदर्शन इतिहास काल आज ध्वनित हो काव्य बने। वर्तमान की चित्रपटी पर भूतकाल सम्भाय्य इने । वर्तमान के सन्दर्भ में ही अतीत का मूल्य है। 'भूतकाल में जो कुछ आदर्श और अनुकरणीय है उसे वर्तमान में सम्भाव्य बनाने में ही इतिहास की राथार्थ उपयोगिता है। इसी हेतु इतिहासकार भी यह प्रयत्न करता है कि वह इतिहासप्रदीपेन मोहावरणधातिना । सर्थलोकधृतं गर्भ बथावत्सम्प्रकाशयेत् । ...इतिहासरूपी दीपक द्वारा अतीत सम्बन्धी अज्ञान एवं प्रान्तियों के अन्धकार को दूर करके बीली हुई घटनाओं और तथ्यावलि को निष्पक्ष दृष्टि से यथावत् प्रकाशित कर दे। किन्तु इतिहासकार की भी अपनी सीमाएँ और अक्षमताएँ हैं। उसे महाकवि मैथिलीशरण की इस उक्ति से सन्तोष करना पड़ता है कि.. सम्पूर्ण सागर नीर चों पर मध्य रह सकता कहाँ ? तथापि अपनी बुद्धि, शक्ति और साधनों के अनुसार वह प्रयत्न करता है। उसे यह आशा भी रहती है कि आगे आनेवाला इतिहासकार उसके कार्य से प्रेरणा लेकर प्रकृत विषय को और अधिक विकसित, विस्तृत, संशोधित और परिमार्जित करेगा। इस विषय में दो मत नहीं हैं कि किसी व्यक्ति, समाज या जाति की मान-पर्यादा उसके इतिहासबद्ध पूर्ववृत्तान्त पर बहुत कुछ निर्भर करती है। जैन परम्परा की इतिहास सम्बन्धी अनभिज्ञता उसके विषय में प्रचलित अनेक प्रान्तियों का मूल कारण है। स्वयं जैनों को अपने इतिहास में जैसा चाहिए वैसी अभिरुचि नहीं रही। इतिहास शान के बिना दि जातीय जीवन में चेतना, स्फूर्ति, स्वाभिमान और आशा का तिरोभाव हो जाता है, तो इतिहास का सभ्यज्ञान सोतों को जगा देता है क्रिसपए अजमते माजी को 'न महम्मिल समझो। कौमें जाग जाती हैं अक्सर इन अफ़सानों से । 16 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और पहिलाएँPage Navigation
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