Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 11
________________ लगभग ऐसे क्रमशः चौदह कुलकर या मनु हुए, जिनमें सर्वप्रथम का नाम प्रतिश्रुति था और अन्तिम का नाभिराय। इन कुलकरों ने अपने-अपने समय की परिस्थितियों में अपने कुलों या जनों का संरक्षण, समाधान और भार्गदर्शन किया। सामाजिक जीवन प्रारम्भ हो रहा था। कर्मयुग सम्मुख था। यहीं से सनाम युग प्रारम्भ हुआ। ___अन्तिम कुलकर नाभिराय के नाम पर ही इस महादेश का सर्वप्राचीन ज्ञात नाम 'अजनाभ' प्रसिद्ध हुआ। वह अपनी चिरसगिनी मरुदेवी के साय जिस स्थान. में निवास करते थे वहीं कालान्तर में अयोध्या नगरी बसी । भारतवर्ष की यह आद्यनगरी थी। इन नाभिराय और मरुदेवी के पुत्र आदिनाथ ऋषभदेव हुए, जो जैन परम्परा के प्रथम तीर्थंकर थे और जैनेतर हिन्दुओं के विश्वासानुसार भगवान विष्णु के एक प्राराम्भक अवतार थे। वयस्क होते ही कुलों की व्यवस्था उन्होंने अपने हाथ में ले ली, और अपने कुशल नेतृत्व में शनैः-शनैः कर्म-प्रधान जीवन (कर्मभूमि) और. मानवी सभ्यता का ॐ नमः किया। अनुश्रुति है कि इन आदिपुरुष प्रजापति पुरुदेव ने ही जनता को खेती करना, आग जलाना, आग में अन्न भूनना और पकाना, ईख का रस निकालना और उसका भोज्य पदार्थ के रूप में उपयोग करना, मिट्टी के बरतन बनाना, कपड़ा बुनना घर-मकान बनाना, ग्राम-नगर बसाना इत्यादि कर्म सर्वप्रथम सिखाये थे। उन्होंने लोगों को असि-मसि-कृषि-वाणिज्य-शिल्प-विथा संज्ञक षट्रकों द्वारा जीविकोपार्जन करने की तथा पुरुषों की बहत्तर और स्त्रियों की चौसठ कालाओं की युगानुरूप शिक्षा दी । अपनी पुत्री ब्राह्मी के लिए अक्षर-झान एवं ब्राह्मी लिपि का आविष्कार किया और दूसरी पत्री सुन्दरी के लिए अंकशान एवं गणित का पुत्रों को राजकाज की शिक्षा दी, और सुशासन की दृष्टि से देश को उनके मध्य विभाजित किया। इस प्रकार चिरकाल तक लौकिक क्षेत्र में जनता का मार्गदर्शन करने के पश्चात् उन्होंने धर्मतीर्थ की स्थापना के लिए उपयुस्त क्षमता प्राप्त करने के उद्देश्य से समस्त वैभव का परित्याग करके, निर्ग्रन्थ बनविहारी हो दुर्धर तपश्चरण किया। अन्ततः केवलज्ञान प्राप्त कर अर्हन्त जिन हुए और अहिंसा एवं निवृत्ति प्रधान मानवधर्म की स्थापना करके आदि तीर्थकर कहलाये। ___ इस घटना के साथ धर्म और कर्म प्रधान चौथा युग प्रारम्भ हुआ जिसमें ऋषभदेव को आदि लेकर भगवान महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नव नारायण, नव प्रतिनारायण और नब बलभद्र ऐसे सठ शालाका-पुरुष हुए, तथा तीर्थकरों के माता-पिता, दश कामदेव, नव नारद, ग्यारह रुद्र, बारह प्रसिद्ध पुरुष, सोलह सतियाँ, आदि अन्य अनेक प्रसिद्ध पुराण-पुरुषों एवं महिलारत्नों में जन्म लिया। इनमें से ऋषभ-पुत्र भरत चक्रवर्ती, जिनके नाम पर यह देश भारतवर्ष कहलाया, बाहुबलि, येन, वसु, राम, कृष्ण, अरष्टिनेमि, पंचपाण्डव, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती, तीर्थकर पार्य, महाराज करकण्ड आदि कई की ऐतिहासिकता वर्तमान इतिहास में प्रायः स्वीकृत हैं। तथापि यह अधिकांशतः अनुश्रुतिगम्य इतिहास (प्रोटो हिस्टरी) का 18 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और पहिलाएँ

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