Book Title: Pramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye Author(s): Jyoti Prasad Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 8
________________ प्रादेशिक मा प्रतिहास की उपयोगिता . : सुप्रसिद्ध पुराणेतिहासकार भगवजिनसेनाचार्य के अनुसार 'इति इह आसीत् यहाँ ऐसा हुआ-इस प्रकार अतीत में घटित घटनाओं का क्रमबद्ध प्रामाणिक विवरण इतिहास, इतिदत या ऐतिष कहलाता है। वह महापुरुषसम्बन्धी' तथा 'महम्महदाश्रयात्' होता, अर्यात महापुरुषज्ञक इस्लेखनीय एवं चिरस्मरणीय व्यक्तियों से सम्बन्धित होता है और इन्हीं के हास्यपूर्ण परिधान कार्यकार होता है। इसी । के साथ वह महाभ्युदयशासनम्' भी होता है, अर्थात् जो उसे पढ़ते, सुनते और सुनते हैं इनके महान अभयुदय रूप लौकिक उत्कर्ष का भी कारण होता है। । वस्तुतः अतीत की कहानी मानव की स्पृहणीय निधि है। अपने पूर्वजों का चरित्र और उनकी उपलब्धियों को जानने की मनुष्य में स्वाभाविक जिज्ञासा एवं बलमा होती है। महाराज परीक्षित के मुख से महाभारतकार कहलाते हैं न हि तृप्यामि पूर्वेषां शृण्वानश्यरितं महत्' में अपने पूर्व पुरुषों के महत् चरित्र को सुनते हुए अधाता नहीं, इच्छा होती है कि सुनता ही रहूँ, सुनता ही रहूँ। एक बात और भी है, जैसा कि एक नीतिकार ने कहा 36 . . . . . स्वजातिपूर्वजानां तु यो न जानाति सम्भवम् । ... स भवेत् पुंश्चलीपुत्रसदृशः पितृवेदकः।। जो व्यक्ति अपने पूर्वजों के इतिहास से अनभिज्ञ है वह उस कुलटापुत्र के समान है जो यह नहीं जानता कि उसका पिता कौन है? इसके अतिरिक्त, अपने पूर्व परुषों के गुणों एवं कार्यकलापों को जानकर मनुष्य स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता है, उनसे प्रेरणा और स्फूर्ति प्राप्त करता हैं, और सचक्र भी लेता है-उनके द्वारा की गयी ग़लतियों को दुहराने से बचता है। इस प्रकार अतीत के पृष्ठों का सदुपयोग वर्तमान के सन्दर्भ में करके लाभान्वित हुआ जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति, संस्था, समाज या जाति अपने अतीत के आदर्शों प्रावेशिक ::15Page Navigation
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