Book Title: Prakrit Vidya me Pro Tatiyaji ke Nam se Prakashit Unke Vyakhyan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_5_001688.pdf

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Page 16
________________ ५२ लेख 'आगमों की मूल भाषा शौरसेनी या अर्धमागधी' में कर चुका हूँ। यह ठीक है कि अर्धमागधी में मागधी के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रीय बोलियों के शब्द रूप भी मिलते हैं। यद्यपि अर्धमागधी में अनेक स्थानों पर 'र्' का 'लू' विकल्प से तो होता ही है, किन्तु इसमें मागधी के कुछ लक्षण जैसे सर्वत्र “र्” का “ल्”, “स्" का "श" नहीं मिलते हैं; फिर भी यह सुनिश्चित सत्य है कि भगवान् महावीर के वचनों के आधार पर सर्वप्रथम इसी अर्धमागधी प्राकृत में आगम और आगमतुल्य ग्रन्थों की रचना हुई है । ऐसी स्थिति में यह कहने का क्या अर्थ है कि अर्धमागधी प्राकृत का आधार शौरसेनी प्राकृत है। इसके विपरीत सिद्ध तो यही होता है कि शौरसेनी प्राकृत का आधार अर्धमागधी है, क्योंकि शौरसेनी आगमों में अर्धमागधी आगमों और महाराष्ट्री के हजारों शब्द-रूप ही नहीं, अपितु हजारों गाथाएँ भी मिलती हैं, इसकी सप्रमाण चर्चा भी हम अपने पूर्व लेख में कर चुके हैं। पुनः आगमिक उल्लेखों से भी यही प्रमाणित होता है कि भगवान् महावीर ने अपने प्रवचन अर्धमागधी प्राकृत में दिये थे और उन्हीं के आधार पर गणधरों ने उसी भाषा में ग्रन्थ रचना की थी। भगवान् महावीर और उनके गणधरों की मातृभाषा मागधी थी, न कि शौरसेनी, क्योंकि वे सभी मगध में ही जन्मे थे। क्या प्रो० व्यासजी भाषाशास्त्रीय, साहित्यिक या अभिलेखीय प्रमाणों से यह सिद्ध कर सकते हैं कि श्वेताम्बर आगमों की अर्धमागधी प्राकृत का आधार शौरसेनी प्राकृत या उसमें रचित ग्रन्थ हैं ? उपलब्ध अर्धमागधी आगमों यथा आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग, ऋषिभाषित आदि को पाश्चात्य एवं पौर्वात्य सभी विद्वानों ने ईस्वी पूर्व की रचनाएँ मानी हैं, जबकि कोई भी शौरसेनी आगम ईसा की तीसरी चौथी शती के पूर्व का नहीं है। इससे सिद्ध यही होता है कि शौरसेनी आगसों का आधार अर्धमागधी आगम है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने 'प्राकृत व्याकरण' में शौरसेनी प्राकृत के विशिष्ट लक्षणों की चर्चा करने के बाद अन्त में यह कहा - 'शेषं प्राकृतवत्, इस सूत्र से क्या यही सिद्ध किया जाय कि शौरसेनी प्राकृत का आधार महाराष्ट्री प्राकृत है। ज्ञातव्य है कि हेमचन्द्र का 'प्राकृत' से तात्पर्य 'महाराष्ट्री प्राकृत' ही है, क्योंकि उन्होंने प्राकृत के नाम से महाराष्ट्री प्राकृत का ही व्याकरण लिखा है। ६. "शौरसेनी प्राकृत के प्राचीनतम रूप सम्राट् अशोक के गिरनार के शिलालेख में मिलते हैं।' इस सम्बन्ध में भी विस्तृत विवेचन हम अपने स्वतन्त्र लेख 'अशोक के अभिलेखों की भाषा मागधी या शौरसेनी' में कर रहे हैं। सभी विद्वानों ने एक स्वर से इस तथ्य को स्वीकार किया है कि अशोक के अभिलेखों की भाषा मागधी या आर्षप्राकृत ही है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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