Book Title: Prakrit Vidya me Pro Tatiyaji ke Nam se Prakashit Unke Vyakhyan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_5_001688.pdf
View full book text
________________
५५
कि "शौरसेनी प्राकृत ही मूल प्राकृत थी और इसकी समवर्ती मागधी प्राकृत इसी का क्षेत्रीय संस्करण थी । " पुनः वे कहते हैं कि "परवर्ती महाराष्ट्री प्राकृत पूरी तरह से शौरसेनी का ही परिवर्तित रूप है, महाराष्ट्री प्राकृत का स्वतन्त्र अस्तित्व मैं नहीं मानता।” पुनः वे कहते हैं कि अर्धमागधी प्राकृत जो कि मात्र श्वेताम्बर जैन आगम ग्रन्थों में मिलती है उसका आधार भी शौरसेनी प्राकृत ही है। इसी क्रम में आगे वे कहते हैं कि "बौद्ध ग्रन्थों की पालि भाषा भी मूलतः शौरसेनी प्राकृत ही है।" उनके इन सब कथनों का निष्कर्ष तो यह है कि मागधी भी शौरसेनी है, महाराष्ट्री भी शौरसेनी है, अर्धमागधी भी शौरसेनी है और पालि भी शौरसेनी है। यदि मागधी, पालि, अर्धमागधी और महाराष्ट्री सभी शौरसेनी हैं, तो फिर यह सब अलग-अलग भाषाएँ क्यों मानी जाती हैं और व्याकरण-ग्रन्थों में इनके अलग-अलग लक्षण क्यों निर्धारित किये गये हैं? मागधी, शौरसेनी, आदि सभी प्राकृतों के अपने विशिष्ट लक्षण हैं, जो उससे भिन्न अन्य प्राकृत में नहीं मिलते हैं, फिर वे सब एक कैसे कही जा सकती हैं। यदि मागधी, पालि, अर्धमागधी और महाराष्ट्री सभी शौरसेनी हैं तो इन सभी के विशिष्ट लक्षणों को भी शौरसेनी के ही लक्षण मानने होंगे और ऐसी स्थिति में शौरसेनी का कोई भी विशिष्ट लक्षण नहीं रह जायेगा; किन्तु क्या शौरसेनी के विशिष्ट लक्षणों के अभाव में उसे शौरसेनी नाम भी दिया जा सकेगा? वह तो परिशुद्ध शौरसेनी न हो करके मागधी, पालि, अर्धमागधी, शौरसेनी और महाराष्ट्री की ऐसी खिचड़ी होगी जिसे शौरसेनी न कहकर अर्धमागधी कहना ही उचित होगा, क्योंकि अर्धमागधी का ही यह लक्षण बताया गया है। ज्ञातव्य है कि अर्धमागधी का लक्षण यही है कि उसमें मागधी के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय बोलियों के शब्द रूप भी पाये जाते हैं।
१०. "मैं शौरसेनी को ही मूल प्राकृत मानता हूँ, मागधी भी लगभग इतनी ही प्राचीन है, परन्तु वस्तुतः उसमें पूर्वी उच्चारण- भेद के अतिरिक्त कोई अन्तर नहीं है। मूलतः यह भी शौरसेनी ही है।"
मैं प्रो० व्यासजी से सविनय यह पूछना चाहूँगा कि यदि शौरसेनी ही मूल प्राकृत भाषा है तो क्या इसका कोई अभिलेखीय या साहित्यिक प्रमाण है ? 'प्रकृतिः शौरसेनी' के जिस सूत्र को लेकर शौरसेनी को मूल प्राकृत भाषा कहा जा रहा है उसमें 'प्रकृति' शब्द का क्या अर्थ है इसकी विस्तृत समीक्षा भी हम पूर्व लेख "जैन आगमों की मूल भाषा अर्धमागधी या शौरसेनी" में कर चुके हैं।
पुनः प्रो० व्यासजी का यह कथन कि मागधी भी लगभग इतनी ही प्राचीन है, यही सिद्ध करता है कि मागधी प्राकृत शौरसेनी से उत्पन्न नहीं हुई है। प्रो० व्यासजी दबी जबान से यह तो स्वीकार करते हैं कि 'मागधी भी इतनी ही प्राचीन है'; किन्तु वे स्पष्ट रूप से यह क्यों नहीं स्वीकार करते कि मागधी शौरसेनी की अपेक्षा प्राचीन है। अशोक के अभिलेख जो ई०पू० तीसरी शती में लिखे गये वे मागधी की प्राचीनता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org