Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 9
________________ तृतीय संस्करण प्राकृत स्वयं - शिक्षक (खण्ड १) का पुनर्मुद्रित संस्करण (१६८२ ) की प्रतियाँ थोड़े ही समय में समाप्त हो गयीं, इसके लिए प्रकाशक और पाठकों का लेखक आभारी है। प्राकृत भाषा अध्ययन के प्रति अभिरुचि बढ़ रही है, यह संतोषप्रद है । माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर द्वारा राजस्थान के स्कूलों में प्राकृत भाषा' विषय प्रारम्भ हो चुका है। उससे प्राकृत सीखने के नये आयाम खुलेंगे। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु लेखक ने 'प्राकृत काव्य-मंजरी' एवं 'प्राकृत गद्य-सोपान' ये दो पुस्तकें और तैयार की थीं। प्राकृत के जिज्ञासु पाठकों ने इन्हें भी स्नेह के साथ अपनाया है। ऐसी पुस्तकें पाठकों तक पहुँचाने में प्राकृत भारती लगन के साथ जुटी हुई है, इसके लिए उसके कार्यकर्ताओं को बधाई है। विगत वर्षों में कई विश्वविद्यालयों एवं परीक्षा बोर्डों के पाठ्यक्रमों में इस प्राकृत स्वयं - शिक्षक को स्वीकृत किया गया है। अतः उसकी आवश्यकता की दृष्टि से इस तृतीय संस्करण के आरम्भ में 'प्राकृत भाषा: स्वरूप एवं विकास' शीर्षक से प्राकृत के उद्भव, भेद-प्रभेद, विकास आदि पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया है। इसी में प्राकृत - शिक्षण के लिए कुछ सुझाव भी प्रस्तुत किये हैं, जिनका प्रयोग हम यहाँ कक्षाओं में कर रहे हैं। और उनका संतोष जनक परिणाम प्राप्त हो रहा है। आशा है, इससे प्राकृत के शिक्षण को एक नयी दिशा मिलेगी। इस संस्करण में प्राकृत के प्रमुख वैयाकरण' शीर्षक से प्राकृत व्याकरण शास्त्र की परम्परा का परिचय दिया गया है। सूक्ष्म अध्येता पाठकों के अध्ययन को इससे गति मिलेगी। विद्वानों एवं प्राकृत के जिज्ञासु पाठकों के सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी, ताकि आगे के संस्करण को और उपयोगी बनाया जा सके। प्राकृत-शिक्षण और उसके अध्ययन के विभिन्न आयामों के साथ जुड़े हुए सभी महानुभावों एवं मित्रों के प्रति सादर आभार । २६, विद्या विस्तार कालोनी सुंदरवास (उत्तरी) उदयपुर- ३१३००१ श्रुत पंचमी, १० जून १६६७ [ viii ] प्रेम सुमन जैन

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