Book Title: Prakrit Margopdeshika Author(s): Bechardas Doshi Publisher: Yashovijay Jain Granthmala View full book textPage 3
________________ आ श्रीकैलाससागरसूरि मानEिEL HERO ferikodaes धारा सप्रेम भेंट ता. .... अपनी प्रथमावृतिनी प्रस्तावना : जा साक्षरो! ... जेम संस्कृतभाषा पवित्र अने सनातन-मानवामां आवे छे, तेवीज़ रीते- प्राकृतभाषा पण पवित्र अने प्राचीन छे, जो के सांप्रत । संस्कृतभाषा सरलताथी शीखवा माटे घणां अक साधनो नजर पर आवेछे, परंतु प्राकृतभापा शीखवा माटे सिवाय हैमव्याकरण वीजें संपूर्ण सुन्दर साधन मळतुं नथी, अने आ युगना युवानो ‘गोखवू ते मगजमारी छे' अम मानी ते व्याकरण सांगोपांग जोइ शकता नथी, तेथीन दिन प्रतिदिन आ प्राकृतभाषा लुप्तप्राय थयेली जोवामां आवेछे, परन्तु हवेथी ओम न थवा पामे अने केवल गुजराती शीखेला विद्यार्थिओपण प्राकृतभापा सरलताथी शीखे, ते माटे आ लघु पुस्तक तैयार करवामां आव्युं छे. आ पुस्तकने तैयार करवामां, तेनी भाषा सुधारा माटे अने प्रेमकॉपी तैयार करवा माटे श्रीमान् मास्तर रायचन्दमाई कसलचन्द भाईए तथा ग्रुफ विगेरे गोवामां बीना साक्षरोसे पण मने घणी सारी सहायता आपेली छे, ते माटे तेओ पूज्योनो आ स्थले ९ सान्तःकरण उपकार मानुछु. यद्यपि पुस्तक लखतां सावचेती राखेली होवा छतां पण ‘सहभूर्भ्रान्तिदुर्वारा' ए वाक्य मूनब कोइ पण स्थले साक्षरोनी नजरे .भूलेलो. .देखाउं, तो. तेओ. मने क्षमा करशे अने मने फरीथी भूल : : न थवा माटे सूचना करशे तो तेओनो हुं आभार मानीश. वीरवर्ष २४३८. ) प्राकृतभाषोपासककार्तिक कृष्ण अष्टमी बेचर जीवराज. श्रीजैनयशोविजयसंस्कृतपाठशाला. बला. वाराणसी. • (काठियावाड).Page Navigation
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