Book Title: Prakirnak Sahitya Ek Parichay
Author(s): Sushma Singhvi
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ प्रकीर्णक साहित्य : एक परिचय 469 (८) आराधना इन आठ प्राचीन श्रुतग्रन्थों के आधार पर प्रस्तुत प्रकीर्णक की रचना हुई है। विषयवस्तु :- दर्शन-आराधना, ज्ञान-आराधना और चारित्र आराधना ये आराधना के तीन भेद हैं। तत्वार्थ श्रद्धा के बिना जीव भूतकाल में अनन्त बार बालमरण से मृत्यु को प्राप्त कर चुके हैं ऐसा कहकर गाथा २२ से ४४ तक पंडितमरण का संक्षिप्त निरूपण किया है। मन में शल्य रखकर मृत्यु प्राप्त करने वाले जीव दुःखी होते हैं, इसके विपरीत अहंकारत्यागपूर्वक चारित्र और शील से युक्त जो समाधिभरण प्राप्त करते हैं वे आराधक होते हैं। इसमें समाधिमरण विधि का विस्तृत विवेचन उपलब्ध है। समाधिमरण के कारणभूत चौदह द्वार आलोचना, संलेखना क्षमापना काल, उत्सर्ग, उद्ग्रास, संथारा, निसर्ग, वैराग्य, मोक्ष, ध्यान विशेष, लेश्या, सम्यक्त्व, पादोपगमन का निरूपण हैं। आलोचना के दस दोष, तप के भेद, चारित्र के गुण, आत्मविशुद्धि के उपायों का विस्तार से वर्णन है । आराधना के तीन प्रकार (उत्कृष्टा - मध्यमा - जघन्या), चार स्कन्ध (दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप) का वर्णन है। निर्यापक आचार्य का स्वरूप विस्तार से बताया है। शरीर से ममत्व त्याग, परीषहजय तथा अशुभध्यान- त्याग सम्बन्धी दृष्टान्तों से विषयवस्तु को पुष्ट किया है । विविध उपसर्ग सहन के उल्लेखों में प्रमुख है - जिनधर्मश्रेष्ठी, मेतार्यऋषि, चिलातीपुत्र, गजसुकुमाल, सागरचंद्र, अवंतीसुकुमाल, चंद्रावतंसकनृप, दमदान्त महर्षि, खंदकमुनि, धन्यशालिभद्र, पाँच पाण्डव, दंड अनगार, सुकोशल मुनि, वज्रर्षि, अर्हन्नक, चाणक्य तथा इलापुत्र । २२ परीषह सहन करने सम्बन्धी उदाहरणों में हस्तिमित्र, धनमित्र, आर्य श्री भ्रबाहुशिष्य मुनि चतुष्क आदि बाईस दृष्टान्त दिये हैं जो प्राय: उत्तराध्ययन सूत्र की नेमिचन्द्रीय टीका में हैं ! 'धर्म पालन करने वाले मत्स्यादि तिर्यंचों के उदाहरण भी दिये हैं। मरणविभक्ति की गाथा ५२५ से ५५० में पादपोपगमन मरण का स्वरूप निरूपण है । ५७० से ६४० गाथा में बारह भावना का विस्तृत विवेचन है और अन्त में निर्वेदजनक उपदेशपूर्वक पंडित मरण का निरूपण कर धर्मध्यान और शुक्लध्यान का महत्त्व प्रतिपादित किया है। (३०) ६. आउरपच्चक्खाणं スヨン Jain Education International - आतुरप्रत्याख्यान पइण्णयसुक्ताई ग्रन्थ में (पृ. १६०,३०५, ३२९) पर प्रकाशित आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक नाम के तीन प्रकीर्णक सूत्र हैं। इनमें से अन्तिम वीरभद्रकृत प्रकीर्णक में ७१ गाथाएँ हैं । इसे अन्तकाल प्रकीर्णक या बृहदातुर प्रत्याख्यान भी कहते हैं। दसवीं गाथा के पश्चात् कुछ गद्यांश भी हैं। मरण के तीन भेद (बालमरण, बालपंडितमरण, पंडितमरण) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15