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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक १० वीरत्थव :
वीरस्तव - ४३ गाथाओं में रचित इस वीरस्तव प्रकीर्णक में महावीर की स्तुति उनके छब्बीस नामों द्वारा की गई है। इसमें २६ नामों का अलग-अलग अन्वयार्थ भी बताया गया है। प्रथम गाथा मंगल और अभिधेय रूप है, तदुपरान्त महावीर के निम्न २६ नामों का उल्लेख है :.(१) अरूह
(२) अरिहंत (३) अरहंत
(४) देव (५) जिण
(६) वीर (७) परमकारुणिक (८) सर्वज्ञ (९) सर्वदर्शी
(१०) पारग (११) त्रिकालविद्
(१२) नाथ (१३) वीतराग
(१४) केवली (१५) त्रिभुवनगुरु
(१६) सर्व (१७) त्रिभुवन वरिष्ठ (१८) भगवान् (१९) तीर्थकर
(२०) शक्रनमस्कृत (२१) जिनेन्द्र
(२२) वर्द्धमान (२३) हरि
(२४) हर (२५) कमलासन और (२६) बुद्ध
वर्द्धमान महावीर के २६०० वें जन्म-महोत्सव के उपलक्ष्य में जैन आगम-परिचय के प्रसंग में प्रमुख प्रकीर्णकों का परिचय प्रस्तुत किया गया है। शेष प्रकीर्णकों हेतु उदयपुर आगम संस्थान ग्रन्थमाला के अन्य प्रकाशन अवलोकनीय हैं। मरणविभत्तिपइण्णयं का अनुवाद एवं सम्पादन इस लेख की लेखिका द्वारा किया जा रहा है।
प्रकीर्णकों में प्राय: एक सुसंहत विषय का निरूपण है, अत: इनका स्वाध्याय उपयोगी होगा। प्रकीर्णकों की गाथाओं के सन्दर्भ अंगों में, अंग बाहय आगमों में, श्वेताम्बर या दिगम्बर सर्वमान्य प्राचीन श्रेण्य ग्रन्थों व शास्त्रों में, व्याख्या-साहित्य में, जैनेतर ग्रन्थों आदि में उपलब्ध होने से प्रकीर्णक साहित्य विभिन्न सम्प्रदायों, आम्नायों, विचार-धाराओं को एक सूत्र में पिरोने में सहायक सिद्ध होंगे।
संदर्भ नंदिसूत्रचूर्णि; (सम्पा.) मुनि पुण्यविजय, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, अहमदाबाद, १९६६,पृ. ६० नंदिसूत्र; (सम्पा.) मुनिमधुकर, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, सूत्र ८१, पृ.
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