Book Title: Prakarana Ratnakar Part 1
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 11
________________ श्री समयसारनाटक. ५१ के प्रगट्यो अवदात मिथ्यात निकंदन; संत दशा तिन्हके पहिचान करै कर जोरि बनारसि बंदन. ॥६॥ अर्थः- जे मंदबुद्धि ते जीव अने शरीरने एक करी जाणे; नेद जाणता नथी. पण जे समकित पाम्यो बे, तेना हृदयमां जड अने चेतन- निन्न जिन्न झान थयुं बे; एवं नेद विज्ञान जागृत थवाथी जेनुं चित्त चंदननी पेठे शी तल थयुं बे; जे मुक्ति मार्गमां केलि करे एटले खेल करी रह्या जे; आ जगत्मां श्री जिनेश्वरना जे न्हाना पुत्र बे. अने साधु जे जे ते सर्वज्ञपुत्र कहेवायडे, माटे ते मोटा पुत्र . वली श्रात्मा सदा निश्चयेकरी सत्यरूपमांज बे, पण मिथ्यात्ववडे मति न थईरह्योबे. ते फरी सत्यस्वरूप जेनुं निर्मल प्रगटताने पाम्युंजे, अने मिथ्यात्वनु निकं दन थयुबे, एटले मिथ्यात्व रह्यं नथी, चार अनंतानुबंधीनी जड तुटी गई. एवी तेमनी शुङदशा उलखीने बनारसीदास बन्ने हाथजोडी वंदना करे. ए सवैयामा सम्यक्त्वनी दृढता बतावी. ॥६॥ पूर्ण सम्यक्त्व दर्शाववानेश्रर्थे फरी तेनीज स्तुति करे. ॥सवैया श्कतीसाः॥-स्वारथके साचे परमारथके साचे चित्त, साचेसाचे बैन कहे सा चे जैनमतीहै; काहुके विरोधी नांहि परजायबुद्धि नाहि, आतम गवेषी न ग्रहस्थहै न यती हैं; सिकिरिकि वृद्धि दीसै घटमें प्रगट सदा, अंतरकी लक्षसों थजाची लक्षपती हैं; दास नगवंतके उदास रहै जगतसों, सुखिया सदीव ऐसे जीव समकिती हैं. ॥७॥ अर्थः- जेनी स्वार्थ एटले श्रात्मा पदार्थनेविषे साची प्रतीति बे. तथा परमार्थ ते मोक्ष पदार्थनेविषे साची प्रतीति . जेनुं चित्त निर्मल बे. जे सत्यवचनना बोल नारा जे. जे साचा जिनमतने ग्रहण करी रह्यावे. जेनुं मन कल्पना करतुं नथी. केम के, ते साते नयन शुधस्वरूप जाणे तेथी कोश्ना दर्शनना विरोधी नथी. जेम बौधमतानुसारी पर्याय बुद्धिवाला डे पण अव्य बुद्धिवाला नथी, तेथी जीवने दणजंगुर माने, तेम समकितीपर्याय बुद्धिवंत नथी. पण यात्मजव्यनी गवेषणा करनार , तेथी तेने पर वस्तुमां मोह नश्री; माटे गृहस्थ पण नथी, अने महा व्रत सीधा नथी तेथी यति पण नथी. पोताना घटनेविषे शुक आत्म ऽव्यने सिझसमानज जुएले. तेथी घटमांज' प्रगट सिकि देखे. अने ज्ञानदर्शन चारित्ररूप रिछिनी वृद्धि जेना घटमां सदा प्रगट देखाय. जे अंतर् परमात्मा देव ने तेनुं जेने लद थयुं बे तेथी श्रयाची एटले कोश्नी पासे कांई मागे नही, एवा लक्षपति बे. वलीजे ए पूर्वोक्त प्रकारना प्रगट स्वरूपने पामेला श्री वीतराग जगवंतने पामीने तेना दास थयाने; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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