Book Title: Prakaran Ratna
Author(s): Nagardas Pragjibhai
Publisher: Nagardas Pragjibhai

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Page 9
________________ संमुद्दध दारिद५ रोग६ रिउ रुदाण ॥ मुच्चंति अविग्घेणं, जे सेत्तुंजं धरंति मणे ॥४॥ सारावलो पयन्नगगाहायो सुअहरेण जणोपायो ॥ जो पढ गुणइ निसुणई, सो लहर, सित्तुंज जत्तफलं ॥२५॥ ॥ इति श@जय लघुकल्प समाप्तः॥ ॥ अय श्रीजीविचारप्रकरणं ॥ जुवणपश्वं वीरं, नमिऊण जणामि अबुदबोंइत्थं । जीवसरूवं किंचि वि, जह भणियं पुवसूरोहिं ॥१॥ जीवा मुत्ता संसारिणो य, तस थावरा य संसारी ॥ पुढवि जल जलण वाऊ, वसई थावरा नेया ॥२॥ फलिइ मणि रयण विदुम, हिंगुल हरियाल मणसिल रसिंदा ॥ कण. गाइ धाउ सेढी, वन्निय धरणेय पलेवा ॥३॥ अब्जय तूरी ऊसं, मट्टो पाहाण जाश्यो णेगा॥ सोवीरंजण खुणा, पुढ विनेया इच्चाई ॥४॥

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