Book Title: Prakaran Ratna
Author(s): Nagardas Pragjibhai
Publisher: Nagardas Pragjibhai

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Page 7
________________ [२] वित्थको मूले ॥ दसजोयण सिहरतले, उच्चत्तं जोयणा अट्ट ॥७॥ ज लहइ अन्नतित्थे,जग्गेण तवेण बंजचेरेण ॥ तं लह पयत्तेणं, सेत्तंज गि. रिम्मि निवसंते॥७॥ जं कोडिए पुन्नं, कामियथाहारजोआ जे उ ॥ लहई तत्थ पुन्नं, एगोववासेण सेत्तुंजे॥ए॥ जं किंचि नाम तित्थं, सग्गे पायाले माणुस्से लोए॥ तं सव्वमेव दिडं, पुंडरिए दिए संत्ते ॥१० ॥ पडिलानंते संघ, दहमदिठेय साहू सेत्तुंजे ॥ कोमिगुणं च अदिडे, दिठेथ अणंतयं होई ॥११॥ केवलनाणुप्पत्ती, निव्वाणं यासि जत्थ साहूणं ॥ पुंडरिए वंदित्ता, सव्वे ते वंदिया तत्थ ॥१२॥ बहावय संमेए, पावा चंपाई उर्जित नगे य॥ वंदिता पुन्न फलं, सयगुणं तंपि घुमरिए ॥१३॥ प्रथा करणे पुन्नं, एगगुणं सयगुणं च डिमाए ॥ जिणलवणेण सहस्सं, पंतगुणं पालणे होश ॥१४॥ पमिमं चे. शहरं वा, सित्तुंज गिरिस्स मत्थ ए कुण॥जुतूण भरहवासं, वस सग्गेण निरुवसग्गे ॥१५॥ नव

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