Book Title: Prachin evam Arvachin Tristutik Gaccha
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf

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Page 6
________________ - यतीन्द्र सूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास साहित्यिक साक्ष्य १. पुण्यसाररास--यह कृति आगमगच्छीय आचार्य हेमरत्नसूरि के शिष्य साधुमेरू द्वारा वि.सं. १५०१ पौषवदि ११ सोमवार को धंधुका नगरी में रची गई। कृति के अंत में रचनाकार ने अपनी गुरु परंपरा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है-- अमरसिंहसूरि हेमरत्नसूरि साधुमेरू (रचनाकार) २. अमररत्नसूरिफागु मरुगुर्जर भाषा में लिखित ८ गाथाओं की इस कृति को श्री मोहनलाल दलीचन्द्र देसाई ने वि.संवत् की १६वीं शती की रचना माना है। इस कृति में रचनाकार ने अपना परिचय केबल अमररत्नसूरि शिष्य इतना ही बतलाया है। यह रचना प्राचीन फागुसंग्रह में प्रकाशित है। अमररत्नसूरि अमररत्नसूरिशिष्य ३. सुन्दरराजारास-आगमगच्छीय अमररत्नसूरि की परंपरा के कल्याणराजसूरि के शिष्य क्षमाकलश ने वि.सं. १५५१ में इस कृति की रचना की। क्षमाकलश की दूसरी कृति ललिताङ्गकुमाररास वि.सं. १५५३ में रची गई है। दोनों ही कृतियां मरु गुर्जर भाषा में है। इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु परंपरा का सुन्दर परिचय दिया है, जो इस प्रकार है-- अमररत्नसूरि सोमरत्नसूरि कल्याणराजसूरि क्षमाकलश (सुन्दरराजारास एवं ललिताङ्गकुमाररास के कर्ता) ४. लघुक्षेत्रसमासचौपाई"--यह कृति आगमगच्छीय मतिसागरसूरि द्वारा वि.सं. १५९४ में पाटन नगरी में रची गई है। इसकी भाषा मरु-गुर्जर है। रचना के प्रारंभ और अंत में रचनाकार ने अपनी गुरु-परंपरा की चर्चा की है, जो इस प्रकार है-- सोमरत्नसूरि उदयरत्नसूरि गुणमेरूसूरि मतिसागरसूरि (रचनाकार) రంగారగారంగారకరంగారంలో 99 సంసారసాగరమbarambarbian Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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