Book Title: Prachin Gurjar Kavya Sanchay
Author(s): H C Bhayani, Agarchand Nahta
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 161
________________ १३६ प्राचीन गुर्जर काव्य संचय अड संपय नव-पूय-सहित इगसठि लहु अक्खर गुरु अक्खर सत्तेव जाणि जाणहु परमक्खर । गुरु जिणवल्लह-सूरि भणइ सिव सुक्खह कारण नरय-तिरय-गइ-रोग-सोग-बहु-दुक्ख-निवारण ॥ जलि थलि महियलि वण-गहणि समरणि होवइ चित्त । पंच-परमेष्टि-मंत्रह तणो सेवा कीजइ नित्त ॥१३ १३.२. जाणु जाणहि. १३.३. श्रीवल्लह; बहु सुक्खह. १३.५. करिज्यो मित्तु; हुइ इकचित्त, नित्त. १३.६. देज्यो नित्त; चित्त. ___अंत: इति श्रीनवकारफलस्तवनमिदं ॥॥ इति श्रीपंचपरमेष्टिस्तवनं समाप्त ॥ इति श्री नवकारस्तोत्रं । संम भवतु । बाई अमोली वाचनार्थः छः ॥ इति श्रीनवकारफलं संपूर्ण । सं १९६५ वर्षे का शुदि २ बुद्धवासरे लिषितमिदं ॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186