Book Title: Pitar Sankalpana ki Jain Drushti Se Samiksha Author(s): Anita Bothra Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ अनुसन्धान ४५ [ किए हुए आवाहन के रूप में दिखायी देता है । ब्राह्मणपितर, क्षत्रियपितर, वैश्यपितर तथा शूद्रपितर इस प्रकार की पितरों की चातुवर्णव्यवस्था की गयी है । पितृपूजा तथा श्राद्धविधि में विशिष्ट अन्नविषयक उल्लेख की मात्रा बहुत ही बढ गयी है जब कि ऋग्वेद में उसका उल्लेख भी नहीं है । ब्राह्मणभोजन द्वारा पितरों को तृप्त करना यह संकल्पना नये सिरे से उद्धृत की गयी है पितरों की अक्षय तृप्ति कराने हेतु विविध प्रकार के मांस का आहार बहराने के उल्लेख हैं । दैनन्दिन, मासिक, त्रैमासिक तथा वार्षिक आदि श्राद्ध के अनेक प्रकार दिये हैं । पितृतर्पण करानेवाले पुरोहित का श्रेष्ठत्व बढ गया है। भोजन करते हुए ब्राह्मणों को किन किन प्राणियों से तथा लोगों से बचना है इसके नियम, उपनियम दिये हैं। शूद्रों को श्राद्ध भोजन के उच्छिष्ट का भी अधिकारी नहीं माना है । श्राद्ध विधि में पुत्र की प्रधानता होने के कारण पितरों की तृप्ति करानेवाले पुत्र की कामना की है । ३ 1 (४) स्मृतिचन्द्रिका : स्मृतिचन्द्रिका के 'श्राद्धकाण्ड' के अन्तर्गत श्राद्धमहिमा, श्राद्धभेद, श्राद्धाधिकारी, श्राद्धकाल, श्राद्धभोजनीयब्राह्मण, पैतृकार्चनविधि, पिण्डदानविधि इ. अनेक विषय विस्तार से वर्णन किये हैं ।" (५) चतुर्वर्गचिन्तामणि : ७० चतुर्वर्गचिन्तामणि के प्रथम भाग के १ से ९ अध्याय में श्राद्धविषयक विचार विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किये हैं । श्राद्धविधि, श्राद्धमहात्म्य, श्राद्धक्रिया, श्राद्धतर्पण, पितृतृति, पितृगण, पितरों के प्रकार, पिण्डदान, ब्राह्मणभोजन, श्राद्धपदार्थ इ. विषय चर्चित किये हैं । 'श्राद्ध' शब्द को 'योगरूढ' शब्द कहा है । श्राद्ध पर अनेक आक्षेप भी उपस्थित किये हैं और अपनी तरफसे उनका निराकरण करने का प्रयत्न भी किया हैं ।" (६) मार्कण्डेयपुराण : मार्कण्डेयपुराण में अध्याय २८ से में पितृपूजा तथा श्राद्ध का विस्तृत वर्णन है ३० तथा ९२ से ९४ इन अध्यायों । उसमें कहा है कि चारों वर्णों I ५. चतुर्वर्गचिन्तामणि अध्याय १ से ९ ३. मनुस्मृति अध्याय ३ ४. स्मृतिचन्द्रिका श्राद्धकाण्ड (३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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