Book Title: Paumchariu Part 5
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 12
________________ कइराय-सयम्भूएव-किउ पउमचरिउ [७५. पचहत्तरिमो सैधि ] जम-धणय-पुरन्दर-डामरहों स-उस्म-जग-जगडावणहाँ। जिह उत्तर-गउ दाहिण-गयहाँ मिबिउ रामु रणे रावणही ।। __ [१] ॥ दुवई || तुझ-तुरङ्ग-सिक्ख-पक्लुक्खय-रय-क्रय-जलप्ण-जालए। दुरम-दन्ति-दन्त-णि सुटिय-सिहि-सिह-विजुमाछए ॥१॥ दप्पुब्भर-भर-यव-संकछिल्लं । हय-फेण-सरङ्गिणि-सरिरुले ॥२॥ गय-मय-गह-काम-मम्ग-मग्नें। करि-कण-पवण-पेल्लिय धमर्गे ॥६॥ चामीयर-चामर-दिग्ण-सोहैं। छत्तोह-पिहिय-दिणयर-करो ॥४॥ धय दण्ड-सपन-मण्डिय-दियन्ा। गर-रुण्ड-खण्ड खाइय-क्रियन्त ॥५॥ हय-हिसिष-भेसिय-रधि-तुर। रह-वा-चार-घरिप-भु ॥॥ रहसुद्ध-खन्ध चिय-कान्धे। काल-माल-किम-सेउ-वन्धे ॥॥ सर-णियर-दिपण-भुवणन्तरालें। पहु-पडह-स-मालरि-बमाले ॥४॥ सुर-बहु-विमाणे छड्यन्तरिक्खें। दुब्बिसमें दु-संघरै दुषिणरिक ॥१॥ तहि तेहएँ दाहणे भाइयण गजमत-मत्त-माया जिह घसा गन्धबहुधुअ-धघल-धय । भिडिय परोप्परु हणुवसाय ॥१०

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