Book Title: Pattavali Samucchaya Part 1
Author(s): Darshanvijay, Gyanvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 83
________________ पट्टावली-समुषयः फंठगतैकादशांगीसूत्रधारकदीपावलिकाकल्पादिकारकश्रीजिनसुन्दरसूरिश्चेति चत्वारः ॥ तैःपरिकरितो राणपुरे श्रीधरणचतुर्मुखविहारे ऋषभाद्यनेकशतविवप्रतिष्ठाकृत् ॥ अनेकभव्यप्रतिबोधादिना प्रवचनमुद्भाव्य वि० नवनवत्यधिकचतुर्दशशत१४६६वर्षे स्वर्गभाक्॥ ५१-मुनिसुंदरेगवएणोत्ति, श्रीसोमसुंदरसूरिप? एकपंचाशत्तमः 5 श्रीमुनिसुन्दरसूरिः ॥ येनानेकप्रासादपप्रचक्रषट्कारकक्रियागुप्तकाऽर्धभ्रमसर्वतोभद्रमुरजसिंहासनाऽशोकभेरीसमवसरणसरोवराऽष्टमहापातिहार्यादिनव्यत्रिशतीबंधतर्कप्रयोगायनेकचित्राक्षरद्वयक्षरपंचवर्गपरिहारायनेकस्सवमय "त्रिदशतरंगिणी" नामधेयाष्टोत्तरशतहस्तमितो लेखः श्रीगुरूणां प्रेषितः ।। चातुर्वैद्यवैशारद्यनिधिरुपदेशरत्नाकरप्रमुखग्रंथकारकः ॥ स्तंभतीर्थे 10 दफरखानेन ‘वादिगोकुलसंड” इति भणितः, दक्षिणस्यां "कालीसरस्वती" ति प्राप्तबिरुदः, अष्टवर्षगणनायकत्वानंतरं वर्षत्रिकं "युगप्रधानपदव्युदयी" ति जनैरुक्तः, अष्टोत्तरशत१०८वर्तुलिकानादौपलक्षकः, बाल्येपि सहस्राभिधानधारकः, संतिकरमिति समहिमस्तवनकरणेन योगिनीकृतमार्युपद्रवनिवारकः चतुर्विशतिवार२४विधिना सूरिमंत्राराधकः ॥ तेष्वपि चतुर्दशवारं 15 यदुपदेशतः स्वस्वदेशेषु चंपकराजदेपाधारादिराजभिरमारिःप्रवर्तिता॥सीरोहीदिशि सहस्रमलराजेनाऽप्यमारिप्रवर्तने कृते येन तिडकोपद्रवो निवारितः ।। श्रीमुनिसुन्दरसूरेवि० षट्त्रिंशदधिके चतुर्दशशत१४३६वर्षेजन्म, त्रिचत्वारिंशदधिके १४४३ व्रतं, षषष्ठ्यधिके १४६६ वाचकपदं, अष्टसप्तत्यधिके १४७८ द्वात्रिंशत्सहस्र ३२००० टंकव्ययेन वृद्धनगरीयसं०देव- 20 राजेन सूरिपदं कारितं, व्युत्तरपंचदशशत१५०३वर्षे का शुष्प्रतिपत्? दिने वर्गभाक् ।। छ॥ ५२-बावएणोत्ति, श्रीमुनिसुन्दरसूरिपट्ट द्विपंचाशत्तमः श्रीरत्नशेखरसूरिः॥ वस्य वि. सप्तपंचाशदधिके चतुर्दशशत१४५७वर्षे क्वचिद्वा द्विपंचाशदधिके१४५२जन्म, त्रिषष्ठ्यधिके१४६३व्रतं, त्र्यशीत्यधिके १४८३ 25 पंडितपदं, त्रिनवत्यधिके १४६३ वाचकपदं, द्वयु त्तरे पंचदशशते१५०२वर्षे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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