Book Title: Paryaye Krambaddh bhi Hoti Hai aur Akrambaddh bhi
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Z_Bansidhar_Pandit_Abhinandan_Granth_012047.pdf

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Page 4
________________ १५० : सरस्वती-वरदपुत्र पं. बंशोधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ निष्कर्ष यद्यपि उत्तरपक्षके समान पूर्वपक्ष भी कात्तिकेयानुप्रेक्षा व आचार्य रविषेण रचित पद्मपुराणके प्रतिपाद्य विषयको प्रमाण मानता है, तथापि ऊपर जो विवेचन किया गया है उससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जहाँ पूर्व पक्ष स्व-परप्रत्यय पर्यायोंकी उत्पत्तिमें जिस देश और जिस कालमें पर्याय उत्पन्न हुई, उत्पन्न हो रही है या उत्पन्न होगी उस देश और उस कालको महत्व न देकर उपादान कारणभूत अन्तरंग सामग्रीके साथ निमित्तकारणभूत बाह्य सामग्रीको महत्व देता है, वहाँ उत्तरपक्ष उस स्व-परप्रत्यय पर्यायकी उत्पत्तिमें उपादानकारणभूत अन्तरंग सामग्रीको महत्व देते हुए भी निमित्तकारणभूत बाह्य सामग्रीको महत्व न देकर उस देश और उस कालको महत्त्व देता है जिस देश और जिस कालमें वह पर्याय उत्पन्न हुई, उत्पन्न हो रही है या उत्पन्न होगी। पूर्वपक्ष स्व-परप्रत्यय पर्यायकी उत्पत्तिमें उक्त देश और कालको महत्व न देकर जो उपादानकारणभूत अन्तरंगसामग्रीके साथ निमित्तकारणभूत बाह्य सामग्रीको महत्व देता है । उसमें हेतु यह है कि वह पक्ष उस पर्यायकी उत्पत्तिमें उस देश और उस कालको नियामक नहीं मानता है जिस देश और जिस कालमें उस पर्यायकी उत्पत्ति हुई, हो रही है या होगी। तथा वह पक्ष उस पर्यायकी उत्पत्तिमें उपादानकारणभत सामग्रीको उस पर्यायरूप परिणत होनेके आधारपर और निमित्तकारणभूत बाह्य सामग्रीको उपादानकी उस पर्यायरूप परिणतिमें सहायक होनेके आधारपर नियामक मानता है। इसके विपरीत उत्तरपक्ष उस स्व-परप्रत्यय पर्यायकी उत्पत्तिमें उपादानकारणभूतअन्तरंग सामग्रीको महत्त्व देते हुए भी निमित्तकारणभूत बाह्यसामग्रीको महत्व न देकर जो उक्त देश और कालको महत्व देता है उसमें हतु यह है कि वह पक्ष उस पर्यायकी उत्पत्तिमें उपादानको उस पर्यायरूप परिणत होनेके आधारपर नियामक मानते हुए भी निमित्तकारणभूत सामग्रीको उस पर्यायरूप परिणत न होने और उपादानकी उस पर्यायरूप परिणतिमें सहायक भी न होनेके आधारपर सर्वथा अकिंचित्कर मानते हुए नियामक न मानकर केवलज्ञानसे ज्ञात होनेके आधारपर उस देश और उस कालको ही नियामक मानता है जिस देश और जिस कालमें वह पर्याय उत्पन्न हई, उत्पन्न हो रही है या उत्पन्न होगी । प्रकृतमें दोनों पक्षोंके मध्य यही मतभेद है। तथ्यका निर्णय : स्वप्रत्यय और स्व-परप्रत्यय दोनों ही प्रकारकी पर्यायोंको उत्पत्तिमें जिस देश और जिस कालमें वे पर्यायें उत्पन्न हुई, उत्पन्न हो रही हैं या उत्पन्न होंगी उस देश और उस कालको नियामक न माना जाकर स्वप्रत्यय पर्यायकी उत्पत्तिमें मात्र उपादानकारणको व स्व-परप्रत्ययपर्यायकी उत्पत्तिमें उपादानकारणके साथ निमित्तकारणको भी नियामक मानना युक्त है, क्योंकि कार्यकी उत्पत्तिकी नियामक वही वस्तु हो सकती है १. जं जस्स जम्मि देसे जेण विहाणेण जम्मि कालम्मि। णादं जिणेण णियदं जम्मं वा अह व मरणं वा ॥ ३२१ ।। तं तस्स तम्मि देसे तेण विहाणेण तम्मि कालम्मि। का सक्कइ चालेदु इंदो वा अह जिणिदो वा ॥ ३२२ ।। २. प्रागेव यदवाप्तव्य येन यत्र यदा यतः । तत्परिप्राप्यतेऽवश्यं तेन तत्र तदा ततः ॥ 1--सर्ग ११०, श्लोक ४०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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