Book Title: Pantrish Bolnno Thokdo
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(0) १३७ रोटलो आपवो पण जेटलो श्रापवो नहीं. १३० सर्वनी साथे उलखाण पिठाण राखवी. १३ए जोजन कस्याने एक प्रहर पूर्ण न थयो हाय
एटलामां फरी नोजन करवू नहीं, तेमज जो. जन कस्या पली बे प्रहर थाय के फरी जमी लेवू
परंतु बे प्रहरथी उपरांत नूख्या रहेवू नहीं. १४० स्त्रीनां वखाण तेना मरण पड़ी करवां. १४१ राजा,देव अने गुरुनी पासे खाली हाथे जवू नहीं १४२ निर्लज स्त्री साथे हास्य न करवू. १४३ शुल कार्यमां कालविलंब न करवो. १४४ तमकेथी श्रावी तरत पाणी पी नहीं. १४५ अर्ड रात्रे उच्च खरे गुह्यनी वातो कहेवी नहीं. १४६ नोजननी वच्चे अने अंतमां जल पी. १४७ अजीर्ण थाय तो एक बे टंक जोजन वर्जवं. १४७ हर्षना समयमां शोकनी वात त्यजवी. १४ए कोई क्रोधना श्रावेशथी निष्ठुर वचन आपणने
श्रावी कहे तोपण न्यायमार्ग मूकवो नहीं. १५० माता, पिता, गुरु, शेठ, खामी अने राजा,
एटलाना अवगुण बोलवा नहीं.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/401a9ebb3c0b3f24ebc750f4859c62fb23c2a4f2f05bc318a9261337f9e0e9e1.jpg)
Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36