Book Title: Panchamrut
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 9
________________ प्रेरणा नहीं देता वह साहित्य नहीं है वह तो एक प्रकार का कूड़ा-कचरा है । मैंने पूर्व भी इस दृष्टि से कथा-साहित्य की विधा में अनेक पुस्तकें लिखी थीं और ये पुस्तकें भी इसी दृष्टि से लिखी गई हैं। अपने इस लक्ष्य की पूर्ति के प्रेरणा स्रोत, मेरे गुरुदेव अध्यात्मयोगी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी महाराज के असीम उपकार को मैं ससीम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। श्री रमेश मुनि जी, श्री राजेन्द्र मुनि जी और श्री दिनेश जी प्रभृति मुनिवृन्द की सेवा-सुश्र षा को भी भुलाया नहीं जा सकता जिनके हार्दिक सहयोग से ही साहित्यिक कार्य करने में सुविधा रही है, मैं उन्हें साधुवाद प्रदान करता हूँ और आशा करता हूँ कि भविष्य में भी उनका इसी प्रकार मधुर सहयोग सदा मिलता रहेगा। श्री 'सरस' जी ने प्रेस की दृष्टि से पुस्तकों को अधिक से अधिक सुन्दर बनाने का प्रयास किया है वह भी सदा स्मृति-पटल पर चमकता रहेगा। २६-४-७६ -देवेन्द्र मुनि जैस्थानक हैदराबाद (आंध्र) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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