Book Title: Panchamrut
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 8
________________ में उसके मानस पर ऐसी अमिट छाप छोड़ देती है जो वर्षों तक अपना असर दिखाती है। यह एक ज्वलंत सत्य है कि यदि उत्तम व श्रेष्ठ कथा साहित्य पढ़ने को दिया तो उसके मन में उत्तम संस्कार अंकित होते हैं। यदि बाजारु घासलेटी-साहित्य पढ़ा गया तो उससे बुरे संस्कार अपना असर दिखाते हैं। मुझे लिखते हुए हार्दिक खेद होता है कि आधुनिक उपन्यास व कहानी, जिसमें रहस्यरोमांस, मारधाड़ और अपराधी मनोवृत्तियों का नग्न चित्रण हो रहा है, वह भारत की भावी पीढ़ी को किस गहन अन्धकार के महागर्त में धकेलेगा यह कहा नहीं जा सकता। आज किशोर, युवक और युवतियों में उस घासलेटी सस्ते साहित्य पढ़ने के कारण उनके अन्तर्मानस को वासना के काले नाग फन फैलाकर डस रहे हैं, जिनका जहर उन्हें बुरी तरह से परेशान कर रहा है । उनका मेरी दृष्टि से उस जहर की उपशान्ति का एक उपाय है और वह है उन युवक और युवतियाँ को घासलेटी साहित्य के स्थान पर स्वस्थ-मनोरंजक श्रेष्ठ साहित्य दिया जाय । प्राचीन ऋषि-महर्षि मुनि व साहित्यमनीषी उत्तम साहित्य के निर्माण हेतु अपना जीवन खपा कर श्रेष्ठतम साहित्य देते रहे हैं । मेरा भी वह लक्ष्य है। मैं भी कथा-रूपक व उत्तम उपन्यास के माध्यम से जन-जन के मन में संयम और सदाचार की प्रतिष्ठा करना चाहता हूँ । न्यायनीति, सभ्यता, संस्कृति का विकास करना चाहता हूँ। मेरा यह स्पष्ट मत है कि साहित्य, साहित्य के लिए नहीं अपितु जीवन के लिए है। जो साहित्य जीवनोत्थान की पवित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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