Book Title: Pahuda Doha Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 33
________________ 22 हे मित्र | तू समझ (कि) वुढापा और मृत्यु दोनो देह मे (होते हैं), भिन्नभिन्न प्राकृतियाँ देह मे (ही) (होती है) । रोग (भी) देह के (ही) (होते हैं), (विभिन्न) लिंग भी देह मे ही (होते है)। 23 यदि (तू) कर्मों से सम्बन्वित भाव को आत्मा कहता है, तव (तू) परम पद प्राप्त नहीं करेगा और फिर मसार (मानसिक तनाव) मे भ्रमण करेगा। 24 25 ज्ञानमय प्रात्मा को छोडकर दूसरा (कोई भी) भाव (झुकाव) पर-सम्बन्धी (ही) (होता है) । हे मनुष्य | तू उसको छोडकर (आत्मा के) शुद्ध स्वभाव का ध्यान कर। यदि ज्ञानमय आत्मा देह से भिन्न समझ ली गई (है), (तो) हे (व्यक्ति)। कौन अन्य (बात) को (व्यर्थ हो) समझे ? (इसलिए) जिन कहते है (कि) तुम सब (इस वात) को समझो, समझो। (तेरे द्वारा) पाँच वैल (रूपीइन्द्रियाँ) नही संभाली गई (हैं) । (तू) नन्दनचन (रूपीआत्मा) को नहीं पहुंचा है। (जव) आत्मा नही जानी गई है) और पर भी नही जाना गया (है), (तो) ऐसे ही (विना बात ही) (तूने) सन्यास ले लिया है। जब मन चिंतारहित सोता है, (तव ही) उपदेश को समझता है । जो (व्यक्ति) चित्त को अचित्त से मिला देता है, वह निश्चय ही चिन्तारहित हो जाता है। 26 28 जहाँ पर (जो) होता है, वहाँ पर (वह) (तू) होने दे । (किन्तु) (तू) हर्ष और विपाद मत कर । (व्यक्ति) सिद्धिमहापुरी (पूर्ण तनाव-मुक्तता) मे प्रवेश करे। (प्राचार्य कहते हैं) कि (यदि) (तुम) (सब लोग) (हर्ष और विपाद को) छोडते हो (तो) वन्धन (तनाव)-मुक्त (हो जावोगे)। 29 अहो । जो पर है, वह पर ही (है) । पर (वस्तु) आत्मा नही होती है । मैं जला दिया जाता हूं, वह (आत्मा) शेप रहता है, तब (मी) (वह) मुडकर (भी) नहीं देखता है। 1 पाहुडदोहा चयनिका ] [१

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