Book Title: Padyatmakopdeshpradip
Author(s): Muktivimal Gani
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 36
________________ आ ग्रन्थनुं सांगोपाग संशोधनकार्य साहित्याचार्य पंडित भाषवानंद शास्त्रीजीए कयुं छे, आ पुस्तक छापवा माटे जैन पत्रना अधिपतिजीए काळजी राखी छे ते माटे संस्था तेनी मामारी छे. ___ आ अन्यनी शुद्धि माटे यथाशक्ति प्रयत्न करवामां आव्यो छे छतां दृष्टिदोष तथा प्रेसदोष विगेरेने लईने कोई स्थले PRO स्खलना जणाय तो विद्वद्वर्ग क्षमा करे ने साथे सूचना करे. फलोधी ली. टे० तपागच्छनी धर्मशाला / पूज्यपाद प्रसिद्ववक्ता अनुयोगाचार्य श्रीमत्पन्यासधी रंगविमलगणिसं. 1999 आ. शु. 10 पर्यान्तेवासी मुनि कनकविमल [मारवाड] CODAP

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