Book Title: Niti Vakyamrutam Satikam
Author(s): Somdevsuri, Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 9
________________ सारके समान कौटिलीय अर्थशास्त्र से ही संक्षिप्त करके लिखा गया है * । " परन्तु हमारी समझ में शास्त्रीजीने उक्त परीक्षा बारीकी से या अच्छी तरह विचार करके नहीं की है । यह हम मानते हैं कि नीतिवाक्यामृतकी रचनामें अर्थशास्त्रकी सहायता अवश्य ली गई है, जैसा कि आगे दिये हुए दोनोंके अवतरणोंसे मालूम होगा । पाठक देखेंगे कि दोनोंमें विलक्षण समता है, कहीं कहीं तो दोनोंके पाठ बिल्कुल एकसे मिल गये हैं । परन्तु इससे यह सिद्ध नहीं होता कि नीतिवाक्यामृत अर्थशास्त्रका ही संक्षिप्त सार है । अर्थशास्त्रका अनुधावन करनेवाला होकर भी वह अनेक अंशों में बहुत कुछ स्वतंत्र है । अर्थशास्त्र के अतिरिक्त अन्यान्य नीतिशास्त्रों के अभिप्राय भी उसमें अपने ढंगसे समावेशित किये गये हैं । इसके सिवाय ग्रन्थकर्त्ता ने अपने देश काल पर दृष्टि रखते हुए बहुत सी पुरानी बातोंको - जिनकी उस समय जरूरत नहीं रही थी या जो उनकी समझमें अनुचित थीं—छोड़ दिया है या परिवर्तित कर दिया है । साथ ही बहुतसी समयोपयोगी बातें शामिल भी कर दी हैं । यहाँ हम अर्थशास्त्र और नीतिवाक्यामृतके ऐसे अवतरण देते हैं जिनसे दोनोंकी समानता प्रकट होती है : --- १ - दुष्प्रणीतः कामक्रोधभ्यामज्ञानाद्वानप्रस्थपरिव्राजकानपि कोपयति, किमङ्गः पुनर्गृहस्थान् । अप्रणीतो हि मात्स्यन्यायमुद्भावयति । बलीयानवलं ग्रसते दण्डधराभावे । — अर्थशास्त्र पृ०९ । दुष्प्रणीतो हि दण्डः कामक्रोधाभ्यामज्ञानाद्वा सर्वजनविद्वेषं करोति । अप्रणीतो हि दण्डो मात्स्यन्यायमुद्भावयति । बलीयानबलं ग्रसते ( इति मात्स्यन्यायः ) | - नीतिवा० पृ०१०४-५१ २- ब्रह्मचर्ये चाषोडशाद्वर्षात् । अतो गोदानं दारकर्म च । अर्थ० पृ०१० । ब्रह्मचर्यमाषोडशाद्वर्षात्ततो गोदानपूर्वकं दारकर्म चास्य । * शास्त्रीजीका यह बड़ा भारी भ्रम है, जो सोमदेवसूरिको वे यशोधर महाराजके समकालिक समझते हैं । यशोधर जैनोंके एक पुराणपुरुष हैं । इनका चरित्र सोमदेवसे भी पहले पुष्पदन्त, बच्छराय आदि कवियोंने लिखा है । पुष्पदन्तका समय शकसंवत् ६०६ के लगभग है । Jain Education International - नी० १६७ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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