Book Title: Niti Vakyamrutam Satikam Author(s): Somdevsuri, Pannalal Soni Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala SamitiPage 19
________________ विद्याओंके आचार्योंका भी उन्होंने कई प्रसंगोंमें जिकर किया है। प्रजापतिप्रोक्त चित्रकर्म, वराहमिहिरकृत प्रतिष्ठाकाण्ड, आदित्यमैत, निामोध्याय, महाभारत, रत्नपरीक्षा, पतंजलिका योगशास्त्र और वररुचि, व्यास, हरबोध, कुमोरिलकी उक्तियोंके उद्धरण दिये हैं। सैद्धान्तवैशेषिक, तार्किक वैशेषिक, पाशुपत, कुलाचार्य, सांख्य, दशबलशासन, जैमिनीय, बाहस्पत्य, वेदान्तवादि, काणाद, ताथागत, कापिल, ब्रह्माद्वैतवादि, अवधूत आदि दर्शनोंके सिद्धान्तोंपर विचार किया है। इनके सिवाय मतङ्ग, भृगु, भर्ग, भरत, गौतम, गर्ग, पिंगल, पुलह, पुलोम, पुलस्ति, पराशर, मरीचि, विरोचन, धूमध्वज, नीलपट, अहिल, आदि अनेक प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध आचार्योंका नामोल्लेख किया है। बहुतसे ऐतिहासिक दृष्टान्तोंका भी उल्लेख किया गया है। जैसे यवनदेश (यूनान ? )में मणिकुण्डला रानीने अपने पुत्रके राज्यके लिए विषदूषित शराबके कुरलेसे अजराजाको, सूरसेन (मथुरा) में वसन्तमतिने विषके आलतेसे रंगे हुए अधरोंसे सुरतविलास नामक राजाको, दशार्ण ( भिलसा )में वृकोदरीने विषलिप्त करधनीसे मदनार्णव राजाको, मगध देशमें मदिराक्षीने तीखे दर्पणसे मन्मथविनोदको, पाण्डय देशमें चण्डरसा रानीने कबरीमें छुपी हुई छुरीसे मुण्डीर नामक राजाको मार १,२,३,४,५-उक्त पाँचों ग्रन्थोंके उद्धरण यश० के चौथे आश्वासके पृ० ११२-१३ और ११९में उद्धृत हैं। महाभारतका नाम नहीं है, परन्तु-'पुराणं मानवो धर्मः साङ्गो वेदश्चिकित्सितम्' आदि श्लोक महाभारतसे ही उद्धृत किया गया है। ६-तदुक्तं रत्नपरीक्षायाम्-'न केवलं ' आदि, आश्वास ५, पृ० २५६ । ७—यशस्तिलक आ० ६, पृ० २७६-७७ । ८,९-आ० ४ पृ० ९९ । १०,११-आ० ५, पृ० २५१-५४ । १२-इन सब दर्शनोंका विचार पाँचवें आश्वासके पृ० २६९ से २७७ तक किया गया है। १३-देखो आश्वास ५, पृ०२५२-५५ और २९९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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