Book Title: Niti Dharm aur Samaj Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 5
________________ नीति, धर्म और समाज यह स्पष्ट प्रतीत होगा कि नीति समाज के धारण और पुष्टि के लिए आवश्यक होनेपर भी उससे समाजका संशोधन नहीं होता। संशोधन अर्थात् शुद्धि, और शुद्धि ही सच्चा विकास है । यदि यह धारणा वास्तविक हो तो कहना चाहिए कि वैसा विकास धर्मके बिना नहीं हो सकता। जिस समाज में उक्त धर्मका जितने अंशमें अधिक पालन होता हो वह समाज उतने अंशमें उच्चतर है । इस वस्तुको स्पष्ट करनेके लिए कुछ दृष्टांतोंपर विचार किया जाय । दो व्यक्तियों को कल्पनामें रखा जाय । उनमेंसे एक तो टिकट मास्टर है जो अपना हिसाब संपूर्ण सावधानीपूर्वक रखता है और रेलवे-विभागको एक पाईका भी नुकसान न हो इसका ध्यान रखता है । वह इसलिए कि यदि भूल होगी तो वह दंडित होगा, और नौकरीसे भी बरखास्त किया जायगा। इतना सावधान भी वह यदि दूसरा भय न हो तो मुसाफिरों के पाससे रिश्वत लेनेसे नहीं चूकता। किन्तु हमारी कल्पनाका दूसरा स्टेशन मास्टर रिश्वत लेने का और उसके हजम हो जानेका कितना हो अनुकूल प्रसंग क्यों न हो, रिश्वत नहीं लेता और 'रिश्वत-खोरीके वातावरणको भी पसंद नहीं करता । इसी प्रकार एक त्यागी व्यक्ति खुले तौरसे पैसे लेने में और अपने पास रखने में अकिञ्चन व्रतका भंग मानकर पैसे नहीं लेना और न अपने पास संग्रह करता है । फिर भी यदि वस्तुत: उसके मनमें आकिञ्चन्य भावकी जागृत्ति नहीं हुई होगी अर्थात् लोभका संस्कार नष्ट नहीं हुआ होगा, तो वह धनिक शिष्योंका संग्रह करके अभिमान करेगा और उससे मानो वह स्वयं धनवान् हो गया हो, इस प्रकार दूसरोंसे अपनेको उन्नत मानता हुआ अपने गौरवपूर्ण अहंपनका प्रदर्शन करेगा । जब कि दूसरा यदि वह सच्चा त्यागी होगा तो मालिक बनकर रुपये अपने पास रखेगा ही नहीं और यदि रखेगा तो उसके मनमें अभिमान या अपने स्वामित्वका गौरव तनिक भी न होगा । यद्यपि वह अनेक धनिकों के बीच में रहता होगा, और अनेक धनिक उसकी सेवा करने होंगे फिर भी उसका उसे अभिमान नहीं होगा या उनके कारण अपनेको दूसरोंरे उन्नत भी नहीं मानेगा । इस प्रकार यादे किसी समाजमें केवल नैतिक दृष्टिसे त्यागी वर्ग होगा तो परिणामतः वह समाज उन्नत या शुद्ध नहीं हो सकता, क्योंके उस समाजमें त्यागी के वेशमें भोगोंका सेवन इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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