Book Title: Niti Dharm aur Samaj Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 8
________________ धर्म और समाज यह निश्चित नहीं किया जा सकता कि अमुक पंथ ही सच्चा धार्मिक है और उसीने समाज में सच्ची शुद्धि की है । ટ फिर क्या ऐसी कोई भूमिका है जो सर्वसामान्य हो और जिसके आधारपर निर्विवाद रूपसे यह कहा जा सके कि बाह्यरूप कैसा भी क्यों न हो किन्तु यदि वह वस्तु विद्यमान है तो उससे समाजका ऐकान्तिक कल्याण ही होगा और वह वस्तु जिस पंथ, जाति या व्यक्तिमें जितने अंश में ज्यादह होगी उतने अंश में उस जाति पन्थ या व्यक्तिसे समाजका अधिक कल्याण ही किया है ? वस्तुतः ऐसी वस्तु है और वह ऊपरको चर्चासे स्पष्ट भी हो गई है। वह है निर्भयता, निर्लेपता और विवेक । व्यक्ति या पंथके जीवन में यह है या नहीं यह अत्यंत सरलता से जाना जा सकता है । जैसा मानना वैसा ही कहना और कहने से विप रीत नहीं चलना अथवा जैसा करना वैसा ही कहना --- यह तत्व यदि जीवन में है तो निर्भयता भी है । ऐसी निर्भयताको धारण करनेवाला नौकर सेठसे डर कर किसी बात को नहीं छुपाएगा और कैसा भी जोखिम सिरपर लेने को तैयार रहेगा। कोई भी भक्त गृहस्थ अपने बड़प्पनकी हानिके भय से धर्मगुरुके सामने अथवा कहीं भी दोषों को छिपानेका अथवा बड़प्पनका मिथ्या दिखावा करनेका ढोंग करने के बजाय जो कुछ सच होगा उसे प्रकट कर देगा। कोई भी धर्मगुरु यदि वह निर्भय होगा तो अपना पाप तनिक भी गुप्त नहीं रखेगा | इसी प्रकार जो निर्लोभ होगा वह अपना जीवन बिलकुल सादा बनावेगा । निर्लोभ पंथके ऊपर बहुमूल्य कपड़ों या गहनोंका भार नहीं होगा। यदि किसी पंथ में निर्लेपता होगी, तो वह अपनी समग्र शक्तियाँ एकाग्र करके दूसरों की 'सेवा लेकर ही संतुष्ट नहीं होगा । यदि विवेक होगा तो उस व्यक्ति या पंथका किसी के साथ क्लेश होनेका कोई कारण ही नहीं रहेगा। वह तो अपनी शक्ति और संपत्तिका सदुपयोग करके ही दूसरोंके हृदयको जीतेगा ! विवेक जहाँ होता है वहाँ क्लेश नहीं होता और जहाँ क्लेश होता है वहाँ विवेक नहीं होता । इस प्रकार हम किसी व्यक्ति या पंथ धर्म है या नहीं, यह - सरलता से जान सकते हैं और उक्त कसौटी से जाँच कर निश्चित कर सकते हैं कि अमुक व्यक्ति या पंथ समाजके कल्याणके लिए है या नहीं । जातिमें महाजन पंच, पंथमें उसके नेता और समस्त प्रजामें शासनकर्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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