Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 2
________________ 433 निशीथ सूत्र आचार्य देववाचक ने नंदीसूत्र में आगम- साहित्य को दो भागों में बांटा है- अंगप्रविष्ट और अंगवाह्य । छेदसूत्र अंगबाह्य है। इसमें जैन साधुसाध्वियों के जीवन से संबंधित आचार विषयक नियमों का विस्तृत विवेचन है | श्रमण जीवन की पवित्रता बनाये रखने के लिये ही छेद सूत्रों का निर्माण हुआ है। ये नियम स्वयं भगवान महावीर द्वारा निरूपित हैं। छेद सूत्रों में निशीथ का प्रमुख स्थान है। निशीथ का अर्थ ही अप्रकाश्य है। यह सूत्र अपवादबहुल है, इसलिये सब को नहीं पढाया जाता था । निशीथ का अध्ययन वही साधु कर सकता है, जो तीन वर्ष का दीक्षित हो और गांभीर्य आदि गुणों से युक्त हो । प्रौढत्व की दृष्टि से कम से कम सोलह वर्ष का साधु ही इसका पाठक हो सकता है। एक विचारधारा के अनुसार निशीथ सूत्र अंगप्रविष्ट के अंतर्गत आता है, अन्य छेद सूत्र अंगबाह्य है । पंडित दलसुखभाई मालवणिया ने 'निशीथ एक अध्ययन' में लिखा है कि यह सूत्र किसी समय आचारांग के अन्तर्गत रहा होगा, किन्तु एक समय ऐसा भी आया कि निशीथ को आचारांग से पृथक् कर दिया गया। यह भी स्मरण रखना चाहिये कि निशीथ आचारांग की अंतिम चूलिका के रूप में था, मूल में नहीं । निशीथ चूर्णि में स्पष्ट है कि इसके कर्ता अर्थ की दृष्टि से तीर्थंकर हैं और सूत्र की दृष्टि से गणधर हैं। दिगम्बर मान्यता दिगम्बर ग्रन्थों में निशीथ के स्थान पर निसीहिया' शब्द का प्रयोग हुआ है। गोम्मटसार में भी यही शब्द प्राप्त होता है। इसका संस्कृत रूप निधिका होता है। गोम्मटसार की टीका में निसीहिया का संस्कृत रूप निषधिका किया है। आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में निशीथ के लिये निषेधक शब्द का व्यवहार किया है। तत्त्वार्थभाष्य में 'निसीह' शब्द का संस्कृत रूप 'निशीथ' माना है। नियुक्तिकार को भी यही अर्थ अभिप्रेत है। इस प्रकार श्वेताम्बर साहित्य के अभिमतानुसार निसीह का संस्कृत रूप 'निशीथ' और उसका अर्थ अप्रकाश्य है। दिगम्बर साहित्य की दृष्टि से निसीहिया का संस्कृत रूप निशीधिका है और उसका अर्थ प्रायश्चित शास्त्र या प्रमाद दोष का निषेध करने वाला शास्त्र है। संक्षेप में सार यह है कि निशीथ का अर्थ रहस्यमय या गोपनीय है। जैसे रहस्यमय विद्या, मंत्र, तंत्र, योग आदि अनधिकारी या अपरिपक्व वृद्धि वाले व्यक्तियों को नहीं बताते, उनसे छिपा कर गोप्य रखा जाता है, वैसे ही निशीथ सूत्र भी गोप्य है। वह भी प्रत्येक व्यक्ति के समक्ष उद्घाटित नहीं किया जा सकता। ऐतिहासिक दृष्टि ऐतिहासिक दृष्टि से पर्यवेक्षण करने पर यह भी सहज ज्ञात होता है कि भारतवर्ष में उस समय जो भिक्षु संघ थे, उनमें इस प्रकार की प्रवृत्तियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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