Book Title: Nishith Sutra Author(s): Lalchand Jain Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 8
________________ 439 निशीथ सूत्र याचना करना, पात्र के लिये मासकल्प या चातुर्मास तक रहना निषिद्ध है। ये प्रवृत्तियाँ करने पर लघु चौमासी प्रायश्चित्त का विधान है। पन्द्रहवाँ उद्देशक इसमें १५४ सूत्र है। पहले चार में साधु की आशातना की और आठ सूत्रों में सचित आम्र, आम्रपेशी, आम्रचोयक आदि खाने का लघु चौमासी प्रायश्चित्त है। गृहस्थ से सेवा करवाने का अकल्पनीय स्थानों में मलमूत्र पठने का पार्श्वस्थ आदि को आहार-वस्त्र देने का निषेध है। विभूषा की दृष्टि से शरीर एवं वस्त्रों का परिमार्जन निषिद्ध है। ये प्रवृत्तियां करने पर लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। सोलहवाँ उद्देशक इसमें ५० सूत्र हैं। साधु को सागारिक आदि की शय्या में प्रवेश का, सचिन ई-गंडेरी चूसने का, अरण्य, वन, अटवी की यात्रा करने वालों से आहार पानी लेने का, असंयमी को संयमी और संयमी को असंयमी कहने का. कलह करने वाले तीर्थिकों से आहार पानी लेने का निषेध है। सतरहवाँ उद्देशक इसमें १५५ सूत्र हैं। साधु-साध्वियों को गृहस्थों से सेवा करवाने का, बंद बर्तन खुलवा कर आहार लेने का, सचित पृथ्वी पर रखा आहार लेने का, तत्काल बना अचित्त शीतल जल लेने का, 'मेरे शारीरिक लक्षण आचार्यपद के योग्य है' ऐसा कहने का निषेध हैं। बाजे बजाना, हँसना, नाचना, पशुओं की आवाज निकालना, वाद्य-श्रवण के प्रति आसक्ति का निषेध है। इसके लिये लघु चौमासी प्रायश्चित का विधान है। अठारहवाँ उद्देशक इसमें ७३ सूत्र हैं । ३२ सूत्रों में नौका विहार के संबंध में विविध दृष्टियों से विचार किया गया है। वैसे तो साधु अप्काय जीवों की विराधना का पूर्ण त्यागी होता है, किन्तु अपवाद के रूप में आचारांग आदि सूत्रों में भी नौका प्रयोग का विधान है। बिना समुचित कारण के नौका विहार करने पर लघु चौमासी प्रायश्चित्त का विधान है। 1 उन्नीसवाँ उद्देशक इसमें ३५ सूत्र हैं । औषधि खरीद कर मंगवाना, तीन मात्रा से अधिक औषधि लेना, विहार में साथ रखना, अस्वाध्याय के समय स्वाध्याय करने का निषेध है । निशीथ आदि छेदसूत्रों की अपात्र को वाचना देना, मिथ्यात्वियों को, अतीर्थियों को वाचना देने का निषेध है। बीसवाँ उद्देशक इसमें ५१ सूत्र हैं। कपटयुक्त और निष्कपट आलोचना के लिये इस उद्देशक में विविध प्रकार के प्रायश्चित्तों का विधान है। निष्कपट आलोचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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