Book Title: Nishith Sutra Author(s): Lalchand Jain Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 6
________________ Reati दाँत, होठ, नाक से वीणा के समान आवाज निकालने का निषेध है। इन सभी प्रवृत्तियों का लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। छठा उद्देशक इसमें ७८ सूत्र हैं। कुशील सेवन की भावना से किसी भी स्त्री का अनुनय करना, हस्तमैथुन करना. शिश्न का संचालन करना, कलह करना. चित्र-विचित्र वस्त्र धारण करना, पौष्टिक आहार करना आदि निषिद्ध है। ऐसा करने पर गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिये इन सभी प्रवृत्तियों का निषेध किया गया है। दिल में विकार भावना जागृत होने पर कामेन्छु कैसी-कैसी प्रवृत्तियाँ करता है, उनका मनोवैज्ञानिक वर्णन इस उद्देशक में किया गया है। सातवाँ उद्देशक इसमें ९२ सूत्र हैं। इसमें भी मैथुन संड पेध है। कामेच्छा से प्रेरित होकर मालायें कडे. आभषण, चर्म वस्त्र प. का निषेध है। कामेच्छा से स्त्री के अंगोपांग का संचालन करना, शरीर परिकर्म करना, सचित्त पृथ्वी पर सोना, बैठना एवं पशु पक्षी के अंगोपांगों को स्पर्श करने का निषेध किया गया है। इन प्रवृत्तियों को करने वालों को गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। आठवाँ उद्देशक इसमें १८ 'सूत्र हैं। धर्मशाला, उद्यान, भवन, वनमार्ग, शून्य मार्ग, तृणगृह, पानशाला, दुकान, गोशाला में अकेला साधु अकेली महिला के साथ रहे, आहार करे, स्वाध्याय करे, शौचादि करे, विकारोत्पादक वार्तालाप करे, रात्रि में स्त्री परीषह करे, अपरिमित कथा करे, साध्वियों के साथ विहार करे, उपाश्रय में रात्रि में महिलाओं को रहने दे, महिलाओं के साथ बाहर जाने-आने का निषेध है। पांच सूत्रों में राजपिंड ग्रहण का निषेध है, ग्रहण करने पर गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। भगवान ऋषभदेव और महावीर के साधुओं के लिये राजपिंड का निषेध है, शेष २२ तीर्थंकरों के साधुओं के लिये नहीं है। राजपिंड में चारों प्रकार के आहार, वस्त्र, पात्र, कंबल और रजोहरण इन आठ वस्तुओं को अग्राह्य कहा गया है। नौवाँ उद्देशक इसमें २५ सूत्र हैं। इसमें भी राजपिंड का निषेध है। साधु को राजा के अन्त:पुर में प्रवेश नहीं करना चाहिये। अन्त:पुर में सगे-संबंधी या नौकरचाकर के अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। श्रमण के अंत:पुर में प्रवेश करने पर राजा के मन में उसके प्रति कुशंका पैदा हो सकती है, अत: श्रमण को अंत:पुर प्रवेश का निषेध किया गया है। दसवाँ उद्देशक इसमें ४१ सूत्र हैं। आचार्य श्रमणसंघ का अनुशासक है। अनंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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