Book Title: Niryukti Sahitya Ek Punarchintan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 6
________________ किन्तु यह भी नियुक्ति वर्तमान में अनुपलब्ध है। इनका उल्लेख नन्दीसूत्र', व्यवहार-भाष्य, आवश्यकचूर्णि° एवं निशीथचूर्णि१ में मिलता है । इस नियुक्ति की विषय वस्तु मुख्य रूप से एकेन्द्रिय अर्थात् पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति आदि में जीवन की सिद्धि करना था। इसे गोविन्द नामक आचार्य ने बनाया था और उनके नाम के आधार पर ही इसका नामकरण हुआ है। कथानकों के अनुसार ये बौद्ध परम्परा से आकर जैन परम्परा में दीक्षित हुए थे। मेरी दृष्टि में यह नियुक्ति आचारांग के प्रथम अध्ययन और दशवैकालिक के चतुर्थ षट्-जीव निकाय नामक अध्ययन से सम्बन्धित रही होगी और इसका उद्देश्य बौद्धों के विरुद्ध पृथ्वी, पानी आदि में जीवन की सिद्धि करना रहा होगा। यही कारण है इसकी गणना दर्शन प्रभावक ग्रन्थ में की गयी है। संज्ञी-श्रुत के सन्दर्भ में इसका उल्लेख भी यही बताता है।१२ . इसी प्रकार संसक्त नियुक्ति नामक एक और नियुक्ति का उल्लेख मिलता है। इसमें ८४ आगमों के सम्बन्ध में उल्लेख है। इसमें मात्र ९४ गाथाएँ हैं। ८४ आगमों का उल्लेख होने से विद्वानों ने इसे पर्याप्त परवर्ती एवं विसंगत रचना माना है । अत: इसे प्राचीन नियुक्ति साहित्य में परिगणित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार वर्तमान नियुक्तियां दस नियुक्तियों में समाहित हो जाती हैं । इनके अतिरिक्त अन्य किसी नियुक्ति नामक ग्रन्थ की जानकारी हमें नहीं दस नियुक्तियों का रचना क्रम : यद्यपि दसों नियुक्तियां एक ही व्यक्ति की रचनायें हैं। फिर भी इनकी रचना एक क्रम में हुई होगी। आवश्यकनियुक्ति में जिस क्रम से इन दस नियुक्तियों का नामोल्लेख है उसी क्रम से उनकी रचना हुई होगी, विद्वानों के इस कथन की पुष्टि निम्न प्रमाणों से होती है १. आवश्यकनियुक्ति की रचना सर्वप्रथम हुई है, यह तथ्य स्वत: सिद्ध है, क्योंकि इसी नियुक्ति में सर्वप्रथम दस नियुक्तियों की रचना करने की प्रतिज्ञा की गयी है और उसमें भी आवश्यक का नामोल्लेख सर्वप्रथम हुआ है।५ पुन: आवश्यकनियुक्ति से निह्नववाद से सम्बन्धित सभी गाथाएं (गाथा ७७८ से ७८४ तक) उत्तराध्ययननियुक्ति में (गाथा १६४ से १७८ तक) में ली गयी है। इससे भी यही सिद्ध होता है कि आवश्यकनियुक्ति के बाद ही उत्तराध्ययननियुक्ति आदि अन्य नियुक्तियों की रचना हुई है। आवश्यकनियुक्ति के बाद सबसे पहले दशवैकालिकनियुक्ति की रचना हुई है और उसके बाद प्रतिज्ञागाथा के क्रमानुसार अन्य नियुक्तियों की रचना की गई। इस कथन की पुष्टि आगे दिये गये उत्तराध्ययननियुक्ति के ९४ श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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