Book Title: Niryukti Sahitya Ek Punarchintan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 9
________________ परम्परागत रूप से अन्तिम श्रुतकेवली, चतुर्दशपूर्वधर तथा छेदसूत्रों के रचयिता आर्य भद्रबाहु प्रथम को ही निर्युक्तियों का कर्त्ता माना जाता है। मुनि श्री पुण्यविजय जी ने अत्यन्त परिश्रम द्वारा श्रुत- केवली भद्रबाहु को नियुक्तियों के कर्त्ता के रूप में स्वीकार करने वाले निम्न साक्ष्यों को संकलित करके प्रस्तुत किया है । जिन्हें हम यहां अविकल रूप से दे रहे हैं३२सुधर्मस्वामिप्रभृतयः यावदस्य भगवतो निर्युक्तिकारस्य १. “अनुयोगदायिनः भद्रबाहुस्वामिनश्चतुर्दशपूर्वधरस्याचार्योऽतस्तान् सर्वानिति ॥" --- - आचारांगसूत्र, शीलाड्काचार्य कृत टीका-पत्र ४. २. “ न च केषांचिदिहोदाहरणानां नियुक्तिकालादर्वाक्कालाभाविता इत्यन्योक्तत्वमाशङ्कनीयम् स हि भगवांश्चतुर्दशपूर्ववित् श्रुतकेवली कालत्रयविषयं वस्तु पश्यत्येवेति कथमन्यकृतत्वाशड्का ? इति । ” उत्तराध्ययनसूत्र शान्तिसूरिकृता पाइयटीका-पत्र १३९. ३. “गुणाधिकस्य वन्दनं कर्त्तव्यम् न त्वधमस्य, यत उक्तम्- “ गुणाहिए वंदणयं " । भद्रबाहुस्वामिनश्चतुर्दशपूर्वधरत्वाद् दशपूर्वधरादीनां च न्यूनत्वात् किं तेषां नमस्कारमसौ करोति ? इति । अत्रोच्यते - गुणाधिका एव ते, अव्यवच्छित्तिगुणाधिक्यात्, अतो न दोष इति । ” ओघनिर्युक्ति द्रोणाचार्यकृतश्टीका-पत्र ३. ४. “ इह चरणकरणक्रियाकलापतरुमूलकल्पं Jain Education International तावदर्थतस्तीर्थकरैः सामायिकादिषडध्ययनात्मकश्रुतस्कन्धरूपमावश्यकं सूत्रतस्तु गणधरैर्विरचितम् । असय चातीव गम्भीरार्थतां सकलसाधु — श्रावकवर्गस्य नित्योपयोगितां च विज्ञाय चतुर्दशपूर्वरेण श्रीमद्भद्रबाहुनैतद्वयाख्यानरूपा” आभिणिबोहियनाणं.” इत्यादिप्रसिद्धग्रन्थरूपा निर्युक्तिः कृता ।” विशेषावश्यक मलधारिहेमचन्द्रसूरिकृत टीका-पत्र १. ५. “ साधूनामनुग्रहाय चतुर्दशपूर्वधरेण भगवता भद्रबाहुस्वामिना कल्पसूत्रं व्यवहारसूत्रं चाकारि, उभयोरपि च सूत्रस्पर्शिकानिर्युक्तिः ।” बृहत्कल्पपीठिका मलयगिरिकृत टीका-पत्र २. ६. इह श्रीमदावश्यकादिसिद्धान्तप्रतिबद्धनिर्युक्तिशास्त्रसंसूत्रणसूत्रधारः श्रीभद्रबाहुस्वामी कल्पनामधेयमध्ययनं निर्युक्तियुक्तं निर्यूढवान् । बृहत्कल्पपीठिका श्रीक्षेमकीर्तिसूरिअनुसन्धिता टीका-पत्र १७७ । इन समस्त सन्दर्भों को देखने से स्पष्ट होता है कि श्रुत- केवली चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु प्रथम को नियुक्तियों के कर्त्ता के रूप में मान्य करने वाला प्राचीनतम सन्दर्भ आर्यशीलांक का है । आर्यशीलांक का समय लगभग विक्रम संवत् की ९वीं - १०वीं सदी माना जाता है । जिन अन्य आचार्यों ने निर्युक्तिकार के रूप में भद्रबाहु प्रथम को माना है, उनमें आर्यद्रोण, मलधारी नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन ९७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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