Book Title: Niryukti Sahitya Ek Punarchintan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 31
________________ जो कन्नाइ धणेय य, णिमंतिओ जुव्वणम्मि गिहवइणा । नयरम्मि कुसुमनामे, तं बइररिसिं णमंसामि ॥ जणुद्धारआ विज्जा, आगासगमा महारिण्णाओ । वंदामि अज्जवइरं, अपच्छिमो जो सुयहराणं ॥ (ग) अपुहुत्ते अणुओगो, चत्तारि दुवार भासई एगो । पुहुताणुओगकरणे, ते अत्थ तओ उ वोच्छिन्ना ॥ देविंदवंदिएहिं, महाणुभागेहिं रक्खिअज्जेहिं । जुगमासज्ज विभत्तो, अणुओगो तो कओ. चउहा ॥ माया य रुद्दसोमा, पिया य नामेण सोमदेव त्ति । भाया य फग्गुरक्खिय, तोसलिपुत्ता य आयरिआ ॥ णिज्जवणभद्भुत्ते, वीसं पढणं च त्स्स पुव्वगयं । पव्वाविओ य भाया, रक्खिअखमणेहिं जणओ य ॥ ३५. जह जह पएसिणी जाणुगम्मि पालित्तओ भमाडेइ । तह तह सीसे वियणा, पणस्सइ मुरुंडरायस्स ॥ - पिण्डनिर्युक्ति, गाथा ४९८ ३६. नइ कण्ह - विन्न दीवे, पंचसया तावसाण णिवसंति । पव्वदिवसेसु कुलवइ, पालेवुत्तार सक्कारे ॥ जण सावगाण खिसण, समियक्खण माइठाण लेवेण । सावय पयत्तकरणं, अविणय लोए चलण धोए ।। पडिलाभिय वच्चंता, निबुड्ड नइकूलमिलण समियाओ । विम्हिय पंच सया तावसाण पव्वज्ज साहा य ॥ - पिण्डनिर्युक्ति, गाथा ५०३-५०५ ३७. (अ) वही, गाथा ५०५ (ब) नन्दीसूत्र स्थविरावली गाथा, ३६ (स) मथुरा के अभिलेखों में इस शाखा का उल्लेख ब्रह्मदासिक शाखा के रूप में मिलता है । ३८. उज्जेणी कालखमणा सागरखमणा सुवण्णभूमीए । इंदो आउयसेस, पुच्छइ सादिव्वकरणं च ॥ Jain Education International - उत्तराध्ययननिर्युक्ति, गाथा ११९ ३९. अरहंते वंदित्ता चउदसपुव्वि तहेव दसपुव्वी । एक्कारसंगसुत्तत्थधारए सव्वसाहू य ॥ - ओघनिर्युक्ति, गाथा १ ४०. श्रीमती ओघनिर्युक्ति, संपादक- श्रीमद्विजयसूरीश्वर, प्रकाशन - जैन ग्रन्थमाला, गोपीपुरा, सूरत, नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन For Private & Personal Use Only ११९ www.jainelibrary.org

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