Book Title: Niryukti Sahitya Ek Punarchintan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 2
________________ ३. सूत्रस्पर्शिक-निर्युक्ति—इसमें आगम की विषय-वस्तु का उल्लेख किया जाता है । प्रो. घाटके इण्डियन हिस्टारीकल क्वार्टरली खण्ड १२ पृ. २७० में नियुक्तियों को निम्न तीन विभागों में विभक्त किया है १. शुद्ध-नियुक्तियां जिनमें काल के प्रभाव से कुछ भी मिश्रण न हुआ हो, जैसे आचारांग और सूत्रकृतांग की नियुक्तियां।। २. मिश्रित किन्तु व्यवच्छेद्य-नियुक्तियाँ जिनमें मूलभाष्यों का समिश्रण हो गया है, तथापि वे व्यवछेद्य हैं, जैसे दशवैकालिक और आवश्यकसूत्र की नियुक्तियां । ३. भाष्य मिश्रित-निर्युक्तियाँ वे नियुक्तियाँ जो आजकल भाष्य या बृहद्भाष्य में ही समाहित हो गयी हैं और उन दोनों को पृथक्-पृथक् करना कठिन है। जैसे निशीथ आदि की नियुक्तियाँ। नियुक्तियाँ वस्तुत: आगमिक परिभाषिक शब्दों एवं आगमिक विषयों के अर्थ को सुनिश्चित करने का एक प्रयत्न है। फिर भी नियुक्तियाँ अति संक्षिप्त हैं, इनमें मात्र आगमिक शब्दों एवं विषयों के अर्थ-संकेत ही हैं, जिन्हें भाष्य और टीकाओं के माध्यम से ही सम्यक् प्रकार से समझा जा सकता है । जैन आगमों की व्याख्या के रूप में जिन नियुक्तियों का प्रणयन हुआ, वे मुख्यत: प्राकृत गाथाओं में हैं । आवश्यकनियुक्ति में नियुक्ति शब्द का अर्थ और नियुक्तियों के लिखने का प्रयोजन बताते हुए कहा गया है—“एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, अत: कौन सा अर्थ किस प्रसंग में उपयुक्त है, यह निर्णय करना आवश्यक होता है। भगवान महावीर के उपदेश के आधार पर लिखित आगमिक ग्रन्थों में कौन से शब्द का क्या अर्थ है, इसे स्पष्ट करना ही नियुक्ति का प्रयोजन है।" दूसरे शब्दों में नियुक्ति जैन परम्परा के पारिभाषिक शब्दों का स्पष्टीकरण है। यहाँ हमें स्मरण रहे कि जैन परम्परा में अनेक शब्द अपने व्युत्पत्तिपरक अर्थ में ग्रहीत न होकर अपने पारिभाषिक अर्थ में ग्रहीत हैं, जैसे—अस्तिकायों के प्रसंग में धर्म एवं अधर्म शब्द, कर्म सिद्धान्त के संदर्भ में प्रयुक्त कर्म शब्द अथवा स्याद्वाद में प्रयुक्त स्यात् शब्द । आचारांग में दंसण (दर्शन) शब्द का जो अर्थ है, उत्तराध्ययन में उसका वही अर्थ नहीं है। दर्शनावरण में दर्शन शब्द का जो अर्थ होता है वही अर्थ दर्शन मोह के सन्दर्भ में नहीं होता है। अत: आगम ग्रन्थों में शब्द के प्रसंगानुसार अर्थ का निर्धारण करने में नियुक्तियों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। नियुक्तियों की व्याख्या-शैली का आधार मुख्य रूप से जैन परम्परा में प्रचलित श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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