Book Title: Nigodthi Moksh Sudhi Author(s): Padmanabh S Jaini Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 5
________________ ४० वात कहे छे. मरुदेवीमां एवी ते शी योग्यता हती जे तेओने आटला ट्रंका गाळामां मोक्षे लई जाय ? ए प्रश्ननो जवाब तथाभव्यत्वना सिद्धान्तथी आपी शकाय, तेवुं उपा. यशोविजयजी व. कहे छे. (अध्यात्ममतपरीक्षा). तथाभव्यत्त्व ए भव्यत्वनो ज विस्तार छे. ते सिद्धान्त प्रमाणे जो के दरेक भव्य जीव समान ज होय छे, छतां तेओनुं तथाभव्यत्व जुदुं जुदुं होय छे. तेथी कोई जीव तीर्थंकर - गणधरादि बने, कोई सामान्य केवली बने. (अने ज्यारे तेओ सिद्ध बने त्यारे बधा समान ज होय.) अन्यथा तीर्थंकर - अतीर्थंकर जीवोमां कोई तफावत न रहे. -- अनुसन्धान- ४१ ( गोपीनाथ कविराजे पण आ ज प्रश्न उठावीने कह्युं छे के : 'बधा ज जीवो समान होवा छतां केटलाक ज तीर्थंकर/ ईश्वर बने छेतो ते जीवोमां तेवी कई योग्यता छे अने तेओए तेने केवी रीते मेळवी छे ते आपणे जाणता नथी. परन्तु जैनदर्शन आ तफावतने समजावता सिद्धान्तो आपणने आपे छे.) वळी, तथाभव्यत्वनां कारणो सिवाय पण जीवोने परस्पर जुदा दर्शावता बीजा तफावतो छे, तेम ललितविस्तरानी टीकामां भद्रङ्करसूरि जणावे छे. तेओ कहे छे के पुरिसुत्तमाणं व पदो तीर्थंकरना जीवनी सार्वकालिक उच्चतानुं प्रतिपादन करे छे. अहीं तेओ क्षेमङ्करगणिना सत्पुरुषचरितनो सन्दर्भ आपे छे के ज्यारे तीर्थंकरना जीवो अव्यवहारराशिमां होय त्यारे पण बीजा जीवोथी चडियाता होय छे. (मात्र तेओनी उच्चता ढंकायेली होय छे.) ज्यारे व्यवहारराशिमां आवे छे त्यारे, पृथ्वीकायमां चिन्तामणि रत्न वगेरे तरीके जन्मे, अपकायमां तीर्थजलपणुं पामे, तेजस्कायमां आरती व नुं अग्नित्व पामे, वायुकायमा वसन्तऋतुमां सुगन्धीस्थाने जन्मे, वनस्पतिमां जन्मे तो कल्पवृक्षरूपे जन्मे बेइन्द्रियमां दक्षिणावर्त्त शंख तरीके जन्मे, पंचेन्द्रियमां श्रेष्ठ अश्व / हस्ति a. बने इत्यादि. Jain Education International आ रीते तीर्थंकरनो जीव बीजा जीवोथी जुदो पड़े छे ते तथाभव्यत्वना सिद्धान्तने प्रमाणित करे छे. अने आ सिद्धान्तथी ज भव्यजीवनो मोक्ष तेना भव्यत्वना परिपाकथी जुदा जुदा समये थाय छे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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