Book Title: Nigodthi Moksh Sudhi
Author(s): Padmanabh S Jaini
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ October-2007 चडी केवलज्ञान पाम्यां अने ते ज वखते आयुः क्षय थये सिद्ध थयां. देवोए तेमनो उत्सव को अने भरतने जणाव्यु. त्यार बाद भरत समवसरणमां गया. भगवाननी स्तोत्र बोलवा द्वारा स्तुति करी. पछी भगवाने देशना आपी, महाव्रतो समजाव्यां अने ऋषभसेन व. ८४ गणधरोनी स्थापना करी. अहीं धर्मकथा-व्रतदान-गणधरस्थापननुं पुनः कथन करवामां शीलाङ्काचार्यनो हेतु-मरुदेवीए मोक्ष माटे जरूरी ज्ञान कई रीते मेळव्यु- ते छे. परन्तु आ विधान नन्दीसूत्रमा कहेला मरुदेवीना अतीर्थसिद्धत्व साथे संगत थतुं नथी. ते ज ग्रन्थमा आगळ शीलाङ्काचार्ये ब्राह्मी-सुन्दरी कया कारणथी स्त्रीपणुं पाम्यां ते वर्णवे छे, परन्तु तेमणे मरुदेवीना स्त्रीत्व माटे कोई कारण आप्युं नथी, अने वनस्पतिकाय/निगोदमांथी तेओ सीधा ज मनुष्यत्व पाम्यां तेनो पण निर्देश करता नथी. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितमां हेमचन्द्राचार्ये पण आवो कोई निर्देश कों नथी. अलबत्त तेओए योगशास्त्रनी स्वोपज्ञवृत्तिमां आ प्रश्न उठावीने तेना समाधानरूपे का छे के - योगना प्रभावथी मरुदेवीए शुक्लध्याननो अग्नि प्रज्वलित कर्यो अने कर्मोने भस्मीभूत कर्यां. तत्त्वार्थसूत्रमा जो के, पूर्वना ज्ञाताने ज शुक्लध्यान संभवी शके छे, तेवं कडं छे. छतां हरिभद्रसूरि आवश्यकनियुक्तिमां तेनो खुलासो करतां कहे छे के पूर्वना व्यावहारिक ज्ञान विना पण शुक्लध्यान संभवे छे अने ते माषतुष मुनि अने मरुदेवीनां दृष्टान्तोमा जोई शकाय छे. उपर कहेला बधा ज. सन्दर्भो, मरुदेवीए क्षपक श्रेणि करी हती तेम कहे छे; अने ते माटे व्यावहारिक व्रत-संयम अथवा बाह्य चारित्र आवश्यक नथी, भावपरिणामथी ज तेवी परिस्थिति उत्पन्न थई शके, तेवू नोंधे छे. वळी, बधा ज ग्रन्थो ए वातथी सभान छे के - मरुदेवीनी सिद्धत्वप्राप्तिमां घणा अपवादो- छूटो मूकवामां आव्यां छे. (तेथी ते आश्चर्यरूप छे.) अने पञ्चवस्तुक-सङ्ग्रहनी शिष्यहिता वृत्तिमां हरिभद्रसूरि पण आ ज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9