Book Title: Nigodthi Moksh Sudhi
Author(s): Padmanabh S Jaini
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ ४२ अनुसन्धान-४१ दिगम्बरो तो तेमना सिद्धान्त प्रमाणे मरुदेवीनो मोक्ष मानता ज नथी. आदिपुराणमा आचार्य जिनसेन नाभिने १४मा कुलकर गणावे छे. तेमना मते तो नाभि पहेलां ज केटलाय समय पूर्वे युगलिकपणुं विच्छेद पाम्युं हतुं. तेओ मरुदेवीनुं वर्णन पण घणुं करे छे परन्तु तेमना पूर्वभव विशे मौन छे. (व्रतद्योतन-श्रावकाचारमां अभ्रदेव कहे छे के मरुदेवी युगलिक हता. तेमनो पूर्वभव दर्शावता ग्रन्थकार कहे छे - पूर्वविदेहमां अमरालका नगरीमां वसुधारवणिकनां पत्नी वसुमती ए मरुदेवीनो जीव हतो. वसुमतीए एकवार बहु गर्वथी जैन मुनिने आदर विना दान आप्युं तेथी ते अनन्तर भवमां युगलिक तरीके जन्मी. आ वात पारम्परिक दिगम्बर मतथी घणी जुदी पडे छे.) आदिपुराणमां आ आगळ कर्वा छे के, मरुदेवी तथा नाभि पोताना पुत्रनी दीक्षामा उपस्थित हतां, परन्तु ते पछी - केवलज्ञान व. अवसरोमां तेओ उपस्थित नथी. वळी, आ अवसर्पिणीना प्रथम सिद्ध मरुदेवी नहि, परन्तु भरतना नाना भाई अनन्तवीर्य हता. दिगम्बर पुराणोमां श्वेताम्बरीय-मरुदेवीना सिद्धत्व के यापनीय वर्धन बन्धुओना सिद्धत्वनो निर्देश नथी. वळी, दिगम्बर मते नित्यनिगोदमांथी नीकळेल जीव मनुष्य तो थई शके परन्तु ते गृहस्थधर्मथी आगळ जई न शके. षट्खण्डागमनी धवला टीकामां कडं छे के, तेवो जीव-स्त्री के पुरुष - सम्यक्त्व के पांचमुं गुणस्थान प्राप्त करी शके. तेथी आगळ न जई शके. तेथी, दिगम्बरोए मरुदेवी, सिद्धत्व मात्र स्त्री होवाना लीधे ज इन्कार्यु होय ते कदाच संभवित नथी. भगवती आराधना अने विजयोदय टीका - बन्ने यापनीयोना छे तेवू संशोधन ताजेतरमा ज नथुराम प्रेमी अने ए. एन. उपाध्येए कयुं छे. अन्यथा, दिगम्बरो तेमां वर्णवेल वर्धन बन्धुओना सिद्धत्वने शी रीते स्वीकारी शके ? तेओए आ कथाने बदलवानो प्रयत्न अवश्य कर्यो छे. द्रव्यसङ्ग्रहनी टोकाना बीजा भागना पृ. ३१८मां लख्यु छे के, भरतना ९२३ पुत्रो नित्यनिगोदमांधी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9