Book Title: Neminathadi Stotra Traya
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ फेब्रुआरी-2005 15 मार्गशीर्ष शुक्ला ११ को इनका जन्म हुआ था । अम्बिका देवी के स्वप्नानुसार इनका जन्म नाम अम्बड़ था । सम्वत् १२५८ चैत्र कृष्णा २ खेड़ नगर के शान्तिनाथ जिनालय में श्रीजिनपतिसूरि ने इनको दीक्षित कर वीरप्रभ नाम रखा था । १२७३ में मनोदानन्द के साथ जिनपालोपाध्याय का जो शास्त्रार्थ हुआ था, उस शास्त्रार्थ के समय वीरप्रभगणि भी सम्मिलित थे। जिनपतिसूरि के मुख से महाविद्वानों की सूची में वीरप्रभमणि का भी नामोल्लेख मिलता है। जिनपतिसूरि ने अपने पाट पर वीरप्रभगणि को बैठाने संकेत भी किया था । सम्वत् १२७७ माघ सुदि ६ को पट्टधर आचार्य बने । उस समय इनका नाम जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) रखा गया । सम्वत् १३३१ आश्विन कृष्णा ५ को जालौर में इनका स्वर्गवास हुआ था । इनके द्वारा १३१३ में रचित श्रावकधर्मविधि प्रकरण और लगभग १२-१३ स्तोत्र प्राप्त हैं । प्रस्तुत गौतमगणधर स्तोत्र प्राकृत भाषा में नौ गाथाओं में रचित है। इसमें उनके विशिष्ट गुणों का वर्णन करते हुए जीवन की विशिष्ट-विशिष्ट घटनाओं का उल्लेख हैं । आचार्य बनने के पूर्व रचना होने से इसमें वीरप्रभ का ही नामोल्लेख किया गया है । ३. सूरप्रभगणि - विक्रम सम्वत् १२४५ में फाल्गुन मास में पुष्करणी नगर में जिनपतिसूरि ने इनको दीक्षा प्रदान कर सूरप्रभ नाम रखा था । १२७७ के पूर्व ही इनको वाचनाचार्य पद प्राप्त हो गया था । आचार्य जिनपतिसूरि की दृष्टि में ये उस समय के उद्भट विद्वान थे । इनके द्वारा रचित कृतियों में केवल एक ही कृति प्राप्त होती है, वह है - श्रीजिनदत्तसूरि रचित कालस्वरूपकुलक-वृत्ति । यह वृत्ति अपभ्रंशकाव्यत्रयी में प्रकाशित हो चुकी है। गौतमगणधर स्तव - यह संस्कृत भाषा में रचित नौ पद्यों की रचना है। शार्दूलविक्रीडित, स्रग्धरा, मालिनी, अनुष्टुप् आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है । इस स्तोत्र में भी भगवान् महावीर के प्रथम शिष्य गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति (गौतम स्वामी) के गुणों की स्तवना भक्तिपूरित हृदय से की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8