Book Title: Nemichandra Acharya ki Khagol vidya evam Ganit Sambandhi Manyataye Author(s): Lakshmichandra Jain Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf View full book textPage 4
________________ आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की खगोल विद्या एवं गणित सम्बन्धी मान्यताएँ ८५ जोड़ी। प्राचीन विज्ञान ने निश्चय पूर्वक घोषणा की थी कि प्रकृति केवल उसी पथ पर चल सकती थी, जो समय के आदि से अन्त तक के लिए कारण और कार्य को अविच्छिन्न शृंखला में निश्चित हो चुका था । 'क' स्थिति के पश्चात् क्रम से अनिवार्यतः 'ख' स्थिति प्रकट होती थी। किन्तु आज तक का नया विज्ञान केवल इतना ही बतला सका है कि 'क' स्थिति के बाद 'ख', 'ग', 'घ' या अन्य असंख्य स्थितियों में से कोई भी एक स्थिति हो सकती है। नया विज्ञान 'ख', 'ग', 'घ' स्थितियों के घटने की आपेक्षिक सम्भाव्यताओं का निर्देश कर सकता है। यहाँ केवल सम्भाव्यता है, निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि किसी एक स्थिति के बाद दूसरी स्थिति क्या होगी? क्वांटम के ऐसे सिद्धान्त की रहस्यात्मक इकाई '' है, जो गति में वृद्धि को नापती है। हाइजेनबर्गादि द्वारा यह ज्ञात किया गया कि कण और तरंगें मूलतः एक हैं और श्रोएडिजर ने तरंग यान्त्रिकी को स्थापित कर एक नया वैज्ञानिक सिद्धान्त प्रस्तुत किया, जो सूक्ष्म जगत् की आने वाली घटनाओं को समझा सकता है । वह भी पूरी तरह नहीं। इस प्रकार आधुनिक भौतिकी द्वारा विश्व के स्वरूप को समझने का प्रयास और उससे खगोल विद्या के रहस्यमय आयाम, विश्व का आयतन, उसमें विभिन्न आकाशीय पिण्डों के स्वरूप और उनके गमन तथा उनकी उत्पत्ति आदि के विभिन्न कलन लगातार प्राप्त किये जा रहे हैं। मैक्सवैल ( १८३१ ई० से १८७९ ई० ) ने यूनानी एटमों (परमाणुओं) को विश्व की अनश्वर आधारशिला बतलाया था और यह विश्व केवल परमाणुमय ही माना गया था। विकिरण को पदार्थ का मूल संघटक अंग न माना जाकर केवल कम्पन माना जाता था। किन्तु बाद में ज्ञात हुआ, वे एटम ( परमाणु ) विद्युत् कणों तथा अन्य प्रकार के गमनशील कणों से निर्मित हैं, जिनसे सारा विश्व निर्मित है । आइन्स्टाइन ने बतलाया कि ऊर्जा (energy) तथा द्रव्यमान(mass) में परस्पर सम्बन्ध है और एक दूसरे में परिवर्तित होते रहते हैं। यह एक घातक रहस्य था, जिनके आधार पर अणुशक्ति का प्रादुर्भाव हो सका और अणुबम आदि के निर्माण होने लगे। फिर हाइड्रोजन बम बनाने के आधार पर सूर्यादि पिण्डों पर होने वाली प्रक्रिया समझी जा सकी। सूर्य अपना भार तभी स्थिर बनाये रख रकता है, जबकि पदार्थ लगभग २५ करोड़ टन प्रति मिनट की दर से सूर्य के भीतर पहुँच रहा हो-इतना विकिरण भार सूर्य से प्रति मिनिट ऊर्जा के रूप में प्रक्षिप्त होता रहता है। सूर्य और ताराओं के जीवन काल का अनुमान उपर्युक्त के सिवाय अन्य तरीकों से भी प्राप्त किया जा सकता है। उनकी अन्तरिक्ष में गति ही बतलाती है कि उनका जीवन काल लाखों-करोड़ों वर्षों का है। गुरुत्वाकर्षणादि शक्ति के सहारे सम्पूर्ण गतिमान विश्व के पिण्ड अपने आप में नियत गति हैं, सुरक्षित हैं। स्थूल जगत् में आइंस्टाइन का सापेक्षता सिद्धान्त वास्तविक ठहरता है और सूक्ष्म जगत् में कवांटम यांत्रिकी। सूर्य और ताराओं की गतियों से ज्ञात होता है कि उनका जीवन काल लाखों-करोड़ों वर्ष होगा। अन्तरिक्ष वास्तव में किस आकार का है ? इस प्रश्न को भी भौतिकी ने कई प्रकार से साधित किया। अन्तरिक्ष स्वयं में वक्र है, जैसी पृथ्वी स्वयं में नारंगी को वक्रता लिये हुए है। १. किन्तु आइन्स्टाइन ने इस तथ्य को कभी मान्यता नहीं दी। उनका विश्वास था कि ईश्वर मानव के साथ पाँसे ( डाइस ) नहीं खेल सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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