Book Title: Nemichandra Acharya ki Khagol vidya evam Ganit Sambandhi Manyataye
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf

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Page 13
________________ लक्ष्मीचन्द्र जैन सूच्यंगुल का अर्थ वह प्रदेश संख्या है, जो अंगुल सूची विस्तार में संलग्न रखी जा सके । प्रतरांगुल का अर्थ वह प्रदेश संख्या है, जो एक अंगुल लम्बे-चौड़े वर्ग में संलग्न समा सके । इसी प्रकार घनांगल का अर्थ है । जगश्रेणी का अर्थ वह प्रदेश संख्या है, जो जगश्रेणी विस्तार को संलग्न रूप से पूरित करती है । जगप्रतर एवं घनलोक के अर्थ प्रदेश संख्याओं से हैं । इन संख्याओं का उपयोग विभिन्न प्रकार की जीव राशियों की गुणस्थान वा मार्गणास्थान में पाई जाने वाली संख्या का निरूपण करने में हुआ है । यह एक विलक्षण प्रणाली है, जो विश्व में कहीं उपलब्ध नहीं है । ९४ पल्य का अर्थ क्या है ? पल्य वह समय संख्या है, जो पल्यों ( गढ़ों) के विविध निर्माणादि विधि से सम्पन्न, उन्नत होती है। काफी बड़ी संख्या है। इससे कर्म स्थिति, आयु आदि के माप होते हैं, इसी प्रकार सागर भी समय संख्या की राशि का द्योतक है। इन्हें उपमा प्रमाण कहा जा सकता है, क्योंकि इनकी उपमा देते हुए अन्य राशियों के प्रमाण क्षेत्र कालादि रूप में स्पष्ट किये गये हैं । इसी प्रकार संख्या प्रमाण द्रव्य राशियों के प्रमाण का द्योतक होने से द्रव्य प्रमाण भी कहलाता है । यह क्रमश: संख्येय, असंख्येय एवं अनन्त होता है । संख्येय और अनन्त के बीच असंख्येय एक नई कल्पना है । किन्तु यह प्रमाण मात्र शाब्दिक नहीं है, वरन् परिमाण बोधक, संख्या बोधक भी है। नेमिचन्द्राचार्य के युग में मान प्रकार के थे - प्रथम लौकिक दूसरा लोकोत्तर । लौकिक मान में प्रस्थादि को मान, तुलादि को उन्मान, चुल्ल आदि को अवमान, संख्या को गणिमान, रत्ती मासा आदि को प्रतिमान और अश्व के मूल्यादि को तत्प्रतिमान रूप में मान्यता थी । लोकोत्तर मान के चार प्रकार थे । द्रव्यमान, क्षेत्रमान, कालमान और भावमान । ये चतुर्दिक् आयाम असाधारण थे । क्योंकि इनके द्वारा किसी भी राशि का मान अच्छी तरह ज्ञात किया जाता था । इनके जघन्य और उत्कृष्ट मानों के तथा मध्यम मानों के उपयोग संख्याओं की ओर ज्ञात राशियों की असीम सीमाओं को बाँधते थे । (त्रिलोकसार १० - १२ ) । विश्व के गणित इतिहास में तब तक कहीं भी द्रव्य, क्षेत्र, काल द्वारा भावमान अथवा ज्ञानमान की व्यवस्था इस रूप में उपलब्ध नहीं है । निम्न सारणी द्वारा इन मानों का निरूपण किया गया है मान द्रव्यमान क्षेत्रमान कालमान भावमान Jain Education International जघन्य एक परमाणु एक प्रदेश एक समय जघन्य, सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक का पर्याय नामक ज्ञान ( अविभागी प्रतिच्छेदन) राशि For Private & Personal Use Only उत्कृष्ट सम्पूर्ण द्रव्य समूह (समस्त जीव, पुद्गल परमाणु इत्यादि ) सर्व आकाश ( प्रदेश | सर्व काल (समय) केवल ज्ञान ( अविभागी प्रतिच्छेद ) राशि www.jainelibrary.org

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