Book Title: Navsmaranani
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ नव स्मरणानि ॥ ३॥ Jain Education Inter महागइंदं अच्चासन्नंपि ते नवि गणंति । जे तुम्ह चलणजुअलं मुणिवइ ! तुंगं समल्लीणा ॥ १५ ॥ युग्मं ॥ समरम्मि तिक्खखग्गाभिग्घाय पविद्धउद्धुयकबंधे । कुंतविणिभिन्नकरिकलह मुक्कसिक्कारपरम् ॥ १६ ॥ निज्जियदप्पुष्धुररिउनरिंदनिवहा भडा जसं धवलं । पावंति पावपसमिण ! पासजिण ! तुह प्पभावेण ॥ १७ ॥ युग्मं ॥ रोगजलजलणविसहरचोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सवाई ॥ १८ ॥ एवं महाभयहरं पासजिणिंदस्स संथवमुआरं । भवियजणाणंदयरं कल्लाणपरंपरनिहाणं ॥ १९ ॥ रायभय- जक्ख- रक्खस- कुसुमिण दुसुमिण-रिक्खपीडासु । संझा दो पंथे उवसग्गे तह य रयणीसु ॥ २० ॥ जो पढइ जो अ निसुणइ ताणं कइणो यमाणतुंगस्स । पासो पावं पसमेउ सयलभुवणच्चि अचलणो ॥ २१ ॥ उवसग्गंते कमठा - सुरम्मि झाणाओ जो न संचलिओ । सुर-नर- किन्नरजुवईहिं संधुओ जयउ पासजिणो ॥ २२ ॥ मज्झयारे अठ्ठारसअक्खरेहिं जो मंतो । जो जाणइ सो झायइ परमपयत्थं फुडं पासं ॥ २३ ॥ पासह समरण जो कुणइ संतुट्ठे हियएण । अद्दुत्तरस्य वाहिभय, नासई तस्स दूरेण ॥ २४ ॥ (६) षष्ठं अजितशान्तिस्मरणम् - अजिअं जिअसवभयं संतिं च पसंतसवगयपावं । जयगुरु For Private & Personal Use Only पञ्चमं नमिऊण स्मरणम् ॥ ॥ ३ ॥ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36