Book Title: Navsmaranani
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 35
________________ Jain Education Intern गुणकेलि वने ॥ ५३ ॥ पुनमनिशि जिम शशहर सोहे, सुरतरु महिमा जिम जग मोहे, पूरवदिसि जिम सहसकरो | पंचानन जिम गिरिवर राजे, नरवरघर जिम मयगल गाजे, तिम जिनशासन मुनिपवरो ॥ ५४ ॥ जिम सुरतरुवर सोहे शाखा, जिम उत्तममुख मधुरी भाषा, जिम वनकेतकी महमए । जिम भूमिपति भुयबल चमके, जिम जिनमंदिर घंटा रणके, तिम गोयम लब्धे गहगए ॥ ५५ ॥ चिंतामणि कर चढिओ आज, सुरतरु सारे वंछितकाज, कामकुंभ सवि वश हुओ ए । कामगवी पूरे मनकामिय, अष्ट महासिद्धि आवे धामिय, सामिय गोयम अणुसरो ए ॥ ५६ ॥ पणवक्खर पहेलो पभणीजे, मायाबीज श्रवण निसुणीजे, श्रीमति शोभा संभवे ए । देवह धुरि अरिहंत नमीजे, विनय पहुत्त उवझाय धुणीजे, इण मंत्रे गोयम नमो ॥५७॥ पुरपुर वसतां कां करीजे, देश देशांतर कांइ भमीजे, कवण काज आयास करो। प्रह उठी गोयम समरीजे, काज समग्गह ततखण सीझे, नवनिधि विलसे तास घरे ॥ ५८ ॥ चउदह सय बारोत्तर वरसे, गोयमगणहर केवलदिवसे, किओ कवित उपगारपरो । आदेहि मंगल एह भणीजे, परवमहोच्छ पहिलो कीजे, ऋद्धिवृद्धिकल्याण करो ॥ ५९ ॥ धन्य माता जिणे उदरे धरिया, For Private & Personal Use Only ANAA ww.jainelibrary.org

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