Book Title: Nandisuttam
Author(s): Punyavijay, Dalsukh Malvania
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 16
________________ नंदिसुत्ते थेरावलिआ वड्ढउ वायगवंसो जसवंसो अज्जणागहत्थीणं / / वागरण-करण-भंगिय-कम्मप्पयडीपहाणाणं // 30 // जच्चंजणधाउसमप्पहाण मुद्दीय-कुवलयनिहाणं। वड्ढउ वायगवंसो रेवेइणक्खत्तणामाणं // 31 // अयलपुरा णिक्खंते कालियसुयआणुओगिए धीरे / बंभद्दीवग सीहे वायगपयमुत्तमं पत्ते // 32 // जेसि ईमो अणुओगो पयरइ अज्जावि अड्ढभरहम्मि / बहुनगरनिग्गयजसे ते वंदे खंदिलायरिए // 33 // तत्तो हिमवंतमहंतविक्कम धीपरक्कममणेतं / सज्झायमणंतधरं हिमवंतं वंदिमो सिरसा // 34 // कालियसुयअणुंओगस्स धारए धारए य पुव्वाणं / हिमवंतखमासमणे वंदे णागज्जुणायरिए // 35 // मिउँ-मद्दवसंपण्णे अणुपुट्विं वायगत्तणं पत्ते / ओहसुयसमायरए णागज्जुणवायए वंदे // 36 // " वैरकणगतविय-चंपय-विमउलवरकमलगभैसरिवण्णे / भवियजणहिययदइए दयागुणविसारए धीरे // 37 // 1. भंगी-कम्म चू०॥ 2. रेवयण डे० ल० // 3. तिमो ल०॥ 4. विक्कमे धिइपर चू० म०॥ 5. महंते जे० शु० डे० चू० / “मणते इति वृत्तौ व्याख्यातम्" इति जे. प्रतौ टिप्पणी / मणते खं० सं० ल० म० // 6 °धरे हिमवंते चू० म० // 7. °णुजोग सं०॥ 8. मिदु-म चू० / मिय-म डे० // 9. मायारे चू०॥ 10. षट्त्रिंशत्तमगाथानन्तरं श्रीहरिभद्रसूरिश्रीमलयगिरि-चूर्णिकारान् पी० प्रतिं च विहाय सर्वास्वपि सूत्रप्रतिष्विदं गाथायुगलमधिकमुपलभ्यते गोविंदाणं पि णमो अणुओगे विउलधारणिंदाणं / निचं खंति-दयाणं परूवणे दुल्लाभिंदाणं // तत्तो य भूयदिन्नं निच्चं तव-संजमे अनिम्विन्नं / पंडियजणसामन्नं वंदामी संजमविहन्नू // एतद्वाथायुगलविषये “गोविंदाणं. इदमपि गाथाद्वयं न वृत्तौ कुतश्चित्" इति जे. प्रतौ टिप्पणी।। 11. तवियवरकणग चू० / वरतवियकणग° म० / न खल्वेतत् चूर्णिकृद्-मलयगिरिपादस्वीकृतं पाठमेदयुगलं सूत्रादर्शेषु दृश्यते // 12. भसिरिव सं०। भसमव डे०॥

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